आज़ादी के बाद जाते-जाते अंग्रेजों ने एक कुटिल चाल चली. उसने भारत के निखटू राजाओं, नवाबों को यह अधिकार दे दिया कि वो अपनी मर्जी से भारत, पाकिस्तान के अलावा नए देश का गठन कर सकते हैं. अंग्रेजों के इस फैसले ने देशी रजवाड़ों और उनके सामन्तों के सपने को परवान चढ़ा दिया. लेकिन सरदार पटेल के नेतृत्व में भारत ज्यादातर (लगभग 560) देशी रियासतों को यह समझाने में सफल रहा कि आधुनिक समय की मांग लोकतंत्र है. देशी रियासतों को अलग देश बनाना, भारत और स्वयं उन रियासतों के लिए भी खतरनाक हो सकता है. अंततः तीन को छोड़कर बाँकी सारी रियासतों ने भारत सरकार के साथ समझौता कर लिए और लोकतंत्र की स्थापना में जुट गए. लेकिन तीन रियासत, हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर किसी भी कीमत पर भारत में विलय नहीं चाहते थे. हालांकि बाद में कश्मीर के
महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया. लेकिन दो रियासत, जूनागढ़ और हैदराबाद अभी भी भारत के लिए समस्या बने हुए थे. जूनागढ़ में जनमत संग्रह के द्वारा 90% जनता ने भारत के साथ रहना तय किया, जिससे ये समस्या भी खत्म हो गई. लेकिन हैदराबाद अभी भी भारत में विलय को तैयार नहीं था. चूंकि हैदराबाद तत्कालीन भारत की सबसे बड़ी रियासत थी. जिसका भूभाग 88 वर्गमील तक फैला था. इसकी आबादी डेढ़ करोड़ के करीब थी. इसलिए भारत के लिए यह महत्वपूर्ण सूबा था. यहाँ का शासक ‘उस्मान अली खान आसिफ़’ था. जिसे निज़ाम कहा जाता था. दरअसल निज़ाम पहले मुगल साम्राज्य के सूबेदार हुआ करते थे. लेकिन औरंगजेब के बाद दिल्ली में मुगल सल्तनत कमजोर पड़ गई. इसी का फ़ायदा उठाकर हैदराबाद का निज़ाम वहाँ का वास्तविक शासक बन बैठा.
1947 के समय हैदराबाद की 85% जनता हिंदू थी, जो भारत में विलय चाहती थी. लेकिन यहाँ की सता और नौकरशाही पर कब्ज़ा मुसलमानों का था. हिन्दू दोयम दर्जे के नागरिक समझे जाते थे. हैदराबाद में निज़ाम की सेना के आलावे मुस्लिम कट्टरपंथियों की एक फौज भी भारत और हिंदुओं के खिलाफ काम कर रही थी. जिसे रजाकार कहा जाता था और इनकी संख्या 20 हज़ार थी. मार्च 1948 आते-आते हैदराबाद का वास्तविक शासन रजाकरों के हाथ में आ गया. जो हैदराबाद को स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहते थे. और इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान से मदद भी मांगी. लेकिन पाकिस्तान की ओर से सकारात्मक जवाब न पाकर रजाकार और निज़ाम अब दूसरे उपार्यों पर विचार करने लगे. और उन्होंने इसका उपाय निकाला हैदराबाद से हिंदुओं का सफाया.इसी नीति के तहत रजाकारों ने भारत से सहानुभूति रखने वाले हिंदुओं का कत्लेआम शुरू कर दिया. 22 मई को रजाकरों की एक टुकड़ी ने ट्रेन में सफर कर रहे हिंदुओ पर गंगापुर स्टेशन के पास हमला
पाकिस्तान भाग गए. और हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया.