आज महात्मा गांधी का नाम सुनते ही हमारे मन में घुटने तक कि धोती पहने, चरखा चलाते एक अधनंगे फ़क्नीर की छवि बनती है. जिन्होंने अपना सबकुछ देश के लिए त्याग दिया. लेकिन क्या आप जानते हैं, उन्होंने अपनी सूट, जूते, पगड़ी और यहां तक कि कमर से ऊपर का वस्त्र का त्याग कब, क्यों और कैसे किया? आज इस लेख में हम आपको गांधीजी के बचपन से लेकर मृत्यु तक कि उनकी बदलती अेषभूषा और उससे जुड़ी रोचक घटनाओं के बारे में बताएंगे. #गुजराती गांधी का बचपन गुजराती बनिया परिवार मैं पैदा होने के चलते बचपन में बापू पैजामे के साथ कमीज पहनते थे. कऔ-कभार गुजराती टोपी और कोट भी पहना करते थे. कक #युवा बैरिस्टर का पश्चिमी सूट. 1888 में युवा गांधी कानून की पढ़ाई करने लंदन गए. जहाँ उन्होंने अपनी गुजराती पोशाक छोड़कर श्री-पीस सूट और हैट लगाना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने अपनी चोटी भी कटवा ली. #साम्राज्यवादी सूट से नफरत. दक्षिण अफ्रीका में रहते हए गांधी जी के मन में अंग्रेजी सूट के लिए घृणा होने लगी. वे सूट को अंग्रेजी जुल्म और वाइट सुप्रीमेसी का पर्याय मानने लगे थे. यधपि इस दौरान उन्होंने सूट का पूरी तरह से त्याग नहीं किया. लेकिन अब काफी माँकों पर वे लुंगी-कुर्ता में नज़र आने लगे थे. यह 1913 की बात है. इसी बीच डरबन में कोयला खदान के मजदूरों पर गोली चलने के विरोध में उन्होंने अपना सर मुड़वा लिया. इसके बाद वे अक्सर ऐसे ही रहते थे.
भारत ल्रॉटकर किस्रान बने गांधीजी,
1915 में दक्षिण अफ्रीक्न से भारत लॉटने के बाद बाधू किसानों की दशा देखकर बड़े दुखी हुए और उनसे सहानुभूति रखते हुए उन्होंने काठियावाड़ी किसान की वेशमूषा में रहना शुरू कर दिया. इसमें ऊपर एक शर्ट, नीचे धोती, एक घड़ी, सफ़ेद गम, चमड़े का जूता और एक टोपी थी. अचंपारण में जूता और चोगा त्यागा. 1917 में निलहे किसानों के लिए सत्याणह के दौरान जब गांधीजी बा(कस्त्रबा गांधी) के साथ चम्पारण पहुंचे तो उन्हें आभास हुआ कि आरतीय किसानों की स्थिति उनकी सोच से करों अधिक दयनीय है. इन किसानों के सामने अब उन्हें अपनी क्ाठियावाड़ी पोशाक भी सामनन््लवाद का प्रतीक ल्गने लगा. इसी दौरान उन्होंने देखा कि यहाँ के नील कैक्ट्रियों में काम करने वाले निम्न ज्वति के मजदूरों को जूते पहनने की अनुमति नहीं है. इस बात से गॉधीजी बड़े हल दुखी हुए और उन्होंने आजीवन जूते का त्याग कर दिया. अब वे लड़की की खड़ाऊं, ऊिसमें चमड़े का फीता लगा होता था, पहनने लगे. इस सत्याग्रह के दौरान बा और कुछ अन्य महिलाएं भी बापू का साथ दे रहीं थी. बापू ने इनको ग्रामीण महिलाओं को साफ-सफाई के प्रति जागरूक करने का काम दिया था. एक बार एक शामीण महिला ने वा कि सामने अपनी असमर्थत्र उताई. उसने बताया कि “उसके पास एक ही साड़ी है. जिसे उसने पहन रखा है. ऐसे में साड़ी रोज़ नहीं धुले जा सकते.” जब यह बात बापू को पता चल्ली तो उन्होंने अपना चोगा बा से कहकर उस महिला को दिलवा दिया. बाबू ने फिर कमी चोगा नहीं ओड़ा.
#जब पहनने लगें केवल घुटने तक की धोती.
1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान बापू ने वह छोटी धोती धारण की जिसे वो आजीवन पहनते रहे. इस दौरान उन्होंने ऐल्लान किया: “मैं चाहता हूँ कि 31 अक्टूबर तक कम से कम अपनी टोपी और गंजी तो त्याग ही दूँ, और सिर्फ़ धोती से काम चलाऊँ और देह बचाने के लिए कभी-कभआर चादर ले लूँ.” इसके बाद ही कभी अंग्रेजी सूट पहनने वाला बैरिस्टर आजीवन छोटी-सी धोती पहनते रहे और अपनी इस धोती वो खुद ही अपने हार्थों से तैयार करते थे. इस छोटी धोती के चलते बापू को कई बार कठिनाहइयाँ का सामना करना पड़ा. लोगों से तरह-तरह के ताने भी सुनने को मिले.
#मेरे हिस्से के कपड़े तो सम्राट ने पहन रखा है.
1931में बापू गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन गए तो बिना कमीज़ के वही छोटी धोती पहने थे. जब बर्किघम पैलेस में सम्राट से मिलने की बारी आई तो उन्होंने अपने पहनावे को लेकर किसौ प्रकार के समझाँते से बुनकार कर दिया. ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें समझाने की कोशिश की. उनसे कहा गया कि. सम्राट के हुज़ूर में जाने के लिए उन्होंने पर्याप्त कपडे नही पहनें हैं. इसपर बापू नें सुरंत जवाब दिमा कि “गेरे हिररों के कपड़े तो आपके सम्राट ने पहन रखे हैं”” और फिर वो अपनी छोटी धोती में ही सम्राट से मिल्रे. बापू की इन्ही खूबियों को देखकर अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था. “आने वाली पीढियां शायद यकीन भी न करें कि हाइमांस का बना एक ऐसा भी व्यक्ति इस दुनिया में आया था.”