अमरनाथ मंदिर की गुफ़ा और इसके पीछे का इतिहास कई रहस्यों से भरा है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अमरनाथ की गुफ़ा ही वह स्थान है जहाँ भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमर होने के गुप्त रहस्य बतलाये थे. क्या कहती हैं पौराणिक कथाएं यह तो आपने पढ़-सुन रखा होगा, मगर वास्तविकता कया है, जानिए. जब भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमर होने का रहस्य बतलाया, उस दौरान वहां उन दोनों दिव्य ज्योतियों के अलावा कोई तीसरा प्राणी नहीं था. न ही महादेव का नंदी, न उनका नाग, न ही सिर पर गंगा, और न ही उनके पुत्र गणेश, और कार्तिकेय. कहानियों के अनुसार भगवान शिव एक गुप्त स्थान की तलाश मैं थे, जिसके कारण उन्होंने अपने वाहन नंदी को सबसे पहले छोड़ा. नंदी जिस स्थान पर छूटा उसे पहलगाम कहा जाने लगा.
अमरनाथ की यात्रा यहीं से शुरू होती है. जब शिव जी पहलगाम से थोड़ा आगे बढ़े तो उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग कर दिया, जिस जगह ऐसा किया वह चंदनवाडी कहलाती है. इसके बाद गंगा जी को पंचतरणी मैं, और कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव को हम शेषनाग कहते हैं. ला अमरनाथ में पहलगाम के बाद अगला पड़ाव गणेश टॉप आता है, इसके पीछे की कहानी यह है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को उड़ा था, इस जगह को महागुणा का पर्वत भी अमरनाथ में पहलगाम के बाद अगला पड़ाव गणेश टॉप आता है, इसके पीछे की कहानी यह है कि इसी स्थान पर अगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को छोड़ा था, इस जगह को महागुणा का पर्वत भी कहते हैं. इसके बाद महादेव ने जहाँ पिस्सू कीड़े को छोड़ा था, उस जगह को पिस्सू घाटी कहते हैं. इस प्रकार महादेव ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांच तत्वों को खुद से अलग किया. इसके बाद महादेव, पार्वती के साथ एक गुफा मेँ गए. कोई भी तीसरा प्राणी, यानी कोई व्यक्ति, कोई पशु-पक्षी आदि गुफा में घुस कर कहानी न सुन ले, इसलिए महादेव ने चारों ओर अग्नि से रेखा बना दी
. इसके बाद महादेव ने जीवन के रहस्य की कथा शुरू कर दी. कथा के बीच मे ही देवी पार्वती को नींद आ गयी और वे सो गई, महादेव कथा सुनने में व्यस्त थे तो उनका ध्यान पार्वती पर नहीं गया. इसी बीच वहाँ एक कबूतर का जोड़ा था, उसने पूरी कहानी सुन ली, जब कथा समाप्त हुई तो महादेव का ध्यान पार्वती पर गया जो सो रही थीं. अब भगवान शिव को क्रोध आया कि आखिर उनकी कहानी सुन कौन रहा था? इसपर उनकी दृष्टि उस कबूतर के जोड़े पर गयी, महादेव के क्रोध से भयभीत हो कर वही कबूतर का जोड़ा अगवान के चरणों पर गिर गया और बोला, है प्रभु! आप अपना क्रोध शांत करें, अभी हमने आपसे अमरकथा सुनी है, अगर आप हमें मार देंगे तो यह कथा झूली हो जाएगी, कृपा कर के हमे पथ प्रदान करें. इस पर अगवान का क्रोथ शांत हो गया और उन्होंने उस जोड़े को वर दिया की तुम सदैव इस स्थान पर शिव और पार्वती के प्रतीक चिन्ह में निवास करोंगे. अंततः कबूतर का यह जोड़ा अमर हों गया और यह ला गुफा अमरकथा की साक्षी हो गई, इस प्रकार इस स्थान का नाम अमरनाथ पड़ा. मान्यता यह है कि आज भी अमरनाथ की गुफा में जाने वाले भक्तों को को कबूतर के इस जोड़े के दर्शन होते हैं. अमरनाथ की गुफा में प्रकृति भी अपने चमत्कार दिखती है, शिव की पूजा वाले विशेष दिनों में अपने आप ही बर्फ से एक शिवलिंग की अआकनलि जप जाती $ ऑफ लाये तीर उऊत कज्तयत खितसी को अ्ी कया
रे गुफा एक हिन्दू तीर्थ स्थान है जो भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में स्थित है. अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 3,888 मीटर की ऊँचाई पर स्तिथ है. हिन्दू धर्म मे इस तीर्थ स्थान का बहुत ज्यादा महत्व है और हिंदुओं में अमरनाथ यात्रा को सबसे पवित्र माना जाता है. भअकक्तगण श्रीनगर से पहलगाम तक कि यात्रा पैदल ही करते हैं, इसके आगे की यात्रा में 5 दिन से ज़्यादा लगते है. अमरनाथ की यात्रा सबसे कठिन यात्रा मानी जाती है, भक्तों के अनुसार जो इस यात्रा को सच्चे मन से कर लेता है, उसे मुक्ति प्रदान होती है. राज्य यातायात परिवहन निगम और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर रोज़ जम्मू से फ्ललगाम और बालताल तक कि यात्रा की सेवा प्रदान करते है. इसके साथ साथ लोग प्राइवेट टैक्सी का औ सहारा ले लेते हैं, जिससे यात्रा करने में कच मदद हो जाती है. उत्तरी रास्ता लगभग 1659 किलोमीटर लंबा है लेकिन इस रास्ते पर चढ़ाई करना बहुत ही मुश्किल है. यह रास्ता बालताल से शुरू होता है और रास्ते में ड्ोमियल, बरारी और संगम से होते हुए गुफा तक पहुचता है. उत्तरी रास्ते में हमें अमरनाथ घाटी और अमरावथी नदी भी देखने को मिलती है जो कि अमरनाथ ग्लेशियर से जुड़ी हुई है. अमरनाथ की शिवलिंग से जुड़ा राज- प्रति वर्ष हज़ाराँ लोग अमरनाथ बाबा के दर्शन के लिए आते हैं, और उनमें उत्साह होता है गुफा के अंदर बानी बाबा बर्फानी की मूर्ती के देखने का. 40 मीटर ऊंची अमरनाथ गुफा मैं पानी की बूंदों के जम जाने की वजह से पत्थर का एक आरोही निक्षेप बन जाता है. हिन्दू धर्म के लोग इस बर्फीले पत्थर को शिवलिंग मानते है, यह गुफा मई से अगस्त तक मोम की बनी हुई होती है क्योंकि इस समय हिमालय की बर्फ पिघल कर इस गुफा के ऊपर आकर जमने लगती है और शिवलिंग समान प्रतिकृति हमे देखने को मिलती है. इन महीनों के दौरान ही इस शिवलिंग का आकार दिन ब दिन कम होता जाता है.