किस्सा- कहानी

भोजप ुरी के शेक्सपपयर: बाबा भभखारी ठाकर

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” हंसि हंसि पनवा खीऔले बेईमनवा कि अपना बसे रे परदेश कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाई गडले, मारी रे करेजवा में ठेस!” भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले बाबा भिखारी ठाकुर के नाटक “बिदेसिया”की ये पंक्तियां आज भी उन उत्तर भारतीय प्रवासी मज़दूरों, छात्रों के मन की पीड़ा को व्यक्त करती है जो तन भर कपड़ा, रोटी और शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए अपने घर परिवार,माटी से दूर अपने ही देश के बड़े शहरों में “विदेशी”बन कर अपमान और ज़िल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर होते हैं. आज भी दिल्‍ली, मुंबई, कलकत्ता जैसे बड़े शहरों में इन प्रवासियों की स्थिति देख कर लगता है कि, हाँ ये वाक़ई अपने ही देश में “बिदेसिया” हैं. बा कछ999छशछछ कक 999 बाबा ने आज से वर्षों पहले प्रवासियों के दु:ख-दर्द को दुनिया के सामने लाया था. बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में आज भी कमोबेश वही हालात है जो बाबा के समय में थी. वैसे तो भोजपुरी भाषा के कई मूर्टूधन्य साहित्यकार हुए, जिन्होने अपने-अपने ढंग से भोजपुरी की सेवा की. लेकिन वो बाबा भिखारी ठाकुर ही थे, जिन्होंने भोजपुरी साहित्य को भारत की नही बल्कि विश्व स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई. तो आइए आज हम बाबा के जीवन से जुड़ी कुछ बातों को जानते हैं.

 

 

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