किस्सा- कहानी
बिहार केसरी श्री कृष्ण बाबू
“स्वाराज मांगी नहीं जाती, छीनी जाती है!” ऐसा मानना था, वीर स्वतंद्रता सेनानी व बिहार के पहले मुख्यमंत्री बाबू श्रीकृष्ण सिंह का. बिहार के लिए किए उनके कार्यो को देखतें हुए उन्हें बिहार केसरी’ की उपाधि दी गई. तो आहए, आज इस लेख के माध्यम से हम बाबू श्रीकृष्ण सिंह के बारे में जानते हैं. #जन्म एवं शिक्षा बाबू कृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर1887 को मुंगेर के एक धर्मपरायण भूमिहार ब्राहमण हुआ था.
उनके पिता एक किसान एवं माता घरेलू महिला थी. श्री बाबू के जन्म के पांच साल बाद ही इनकी माता की मृत्यु हो गई. 4 0 ४७ कुक अाकी सिक्रा का सम ही हू झावा छाए जज पटाव भरयाफा 8 एटलवशिया’ को साथ से भ्रम करमाकाक, विययान्त+ ७ पत्र ५ पर काका से चित हरकत को ग्क लाए १६४0 क कुध्य आकर, कक #तिलक, अरविंदो का प्रभाव और सत्याग्रह की राह. वकासत के दौरान श्री बायू तिलक और अरविंदो धोष जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के प्रभाव में आये, और कांग्रेस के गरम दल से जुड़ गए. बाद में गांधीजी के सम्पर्क में आने के बाद हन्होंने ऋंति की राह छप्रेडकर सत्यागह के पथ पर चसने का निर्णय किया.
फिर जीवन पर्यत इसी पथ पर यत्रते रहे. लेकिन नरम दल में रहने के बावजूद गरम दल वाल्रों के प्रति इनकी सहानुभूति हमेशा बनी रही, असहयोग आंदोखन के दौरान गॉधीजी के आहयान पर इन्होंने अपनी चलती व्कास्त छोड़ दी और अपना सारा जीवन देश और समाज क्यो समर्पित कर दिया. साइमन कमौशन का विरोध करतें हुए जेल भी गए. इसके बाद जेल जाने का सिलसिस्रा शुरु हो गया. जो आरत की आजाली जनक सखाता रत