मंगल दिन आजु हे, पाहुन छथ आयल – विवाह पंचमी का यह मंगलगीत मिथिला की संस्कृति है. विवाह पंचमी अर्थात प्रभू श्री राम और माता सीता के विवाह का दिन. श्री राम स्वयं चेतना के प्रतीक है और माँ सीता प्रकृति की स्वरूप है. चेतना और प्रकृति के मिलाप का दिन है, विवाह पंचमी. आज मिथिला में उत्सव का अवसर है. जनक दुलारी सीता का दशरथ नंदन राम से विवाह का दिन.
रामायण का एक प्रसंग है- आतातायी शक्तियों का विनाश करने के लिये महर्षि विश्वामित्र अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पास पहुंचे और कहा-
हे राजन ! राक्षसी शक्तियों के नाश के लिये मुझे आपका पुत्र राम चाहिये. महाराज दशरथ ने अचंभित होते हुये कहा- हे महर्षि क्षमा करें, राम मुझे सबसें अधिक प्रिय है. आप मेरी सेना ले जाये,मुझसे जो आवश्यकता हो कहिये मैं प्रबंध करता हूं, परन्तु मेरे प्राण प्रिय राम को नहीं ले जाइये.
महाराज दशरथ की यह बात सुनकर महर्षि विश्वामित्र क्रोधित होते हुए कहते है, महाराज दशरथ तुम पुत्र के मोह से पूर्णतः घिर चुके हो.. राजा का धर्म होता है, ऋषियों की सहायता करना लेक़िन तुम अपना धर्म नहीं निभा रहे.
महर्षि विश्वामित्र को क्रोधित देखकर महाराज थोड़ा घबड़ा गये और उन्होंने पूछा हे महर्षि ! आपको इस कार्य के लिये मेरा पुत्र राम ही क्यों चाहिये ?
महर्षि ने कहा आप बहुत भाग्यशाली है महाराज दशरथ- अगर किसी व्यक्ति में यौवन- धन – सम्पति या प्रभुत्व में से कोई एक भी चीज़ आ जाये तो उसके भीतर अहंकार हो जाता है. मानो ये चारों चीजें किसी एक मनुष्य के पास हो जाये फिर तो सर्वनाश है लेक़िन अयोध्या नरेश तुम्हारे पुत्र राम के पास धन- सम्पति- यौवन और प्रभुत्व सभी है. इसके बावजूद राम बहुत सरल और शिष्ट है. राम का जन्म सिर्फ अयोध्या के कल्याण के लिये नहीं यधपि सम्पूर्ण जगत के उत्थान के लिये हुआ है..
महाराज दशरथ नम आंखों से महर्षि की बात मानते हुये राक्षसी शक्तियों का अंत के लिये अपने पुत्र राम को विश्वामित्र के साथ जाने की अनुमति देते है.
राम को जीवन में सजीव करने के लिये इस शुभ दिन का उत्सव बेहद ज़रूरी है. आधुनिकता और भौतिकता के भाग-दौड़ में हम आत्मचेतना से दूर होते जा रहे है. आज का दिन कहता है, ऐ मनुष्य कब-तक भागोगे ठहरो ! अपने भीतर के राम का संस्मरण करो. साधन से नहीं साधना से जीवन का कल्याण होगा.
इसी क्रम में कई राक्षसी ताकतों के अंत के बाद महर्षि विश्वामित्र प्रभू श्री राम और उनके अनुज लक्ष्मण को मिथिला के राजा जनक के यहां लेकर जाते है. वही राजा जनक के पुत्री सीता के स्वयंवर में प्रभू श्री राम भगवान शिव की धनुष तोड़ कर सीता को जीत लेते है.. औऱ इन्ही संयोग से होता है- चेतना और प्रकृति का मिलन.. भगवान राम का माँ सीता से विवाह- और आज का यह शुभ दिन उसी मंगल दिवस का प्रतीक है.
जय-जय श्री राम