किस्सा- कहानी

जब भाजपा को संसद में थी मात्र 2 सीटें, कांग्रेस उड़ाती थी मज़ाक..

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आज भारत के सत्ता में पूर्ण बहुमत से भी अधिक सीटों के साथ शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी के पास कभी संसद में मात्र 2 सीटें थी. 1984 में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एक समय भाजपा से ही देश के प्रधानमंत्री होंगे. 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. कांग्रेस के प्रति असंतोष से मर्माहत जनसंघ और जनता पार्टी एक हो गए थे. धीरे- धीरे जनता पार्टी में बिखराव आने लगा और इसी टूट के कारण 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुयी. 1980 में बना भारतीय जनता पार्टी आज देश की सर्वोच्च पार्टी है.

भारतीय जनता पार्टी ने अपने स्थापना के बाद 1984 में पहली बार चुनाव में भाग लिया. 1984 का चुनाव भाजपा के लिये पहला और बेहद अहम चुनाव था. इस चुनाव में भाजपा के मात्र 2 उम्मीदवार जीतकर संसद तक पहुँचे. इनमें से चंदू पाटिया रेड्डी ने आंध्र प्रदेश के हनामकोरा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.वी नरसिम्हा राव को हराया वहीं गुजरात के मेहसाणा से भाजपा उम्मीदवार ए.के पटेल ने कांग्रेस के दिग्गज़ उम्मीदवार आर. एस कल्याण भाई को हराया. 1984 में मात्र 2 संसदीय सीटों पर जितने वाली पार्टी ने फ़िर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

कांग्रेस पार्टी ने कभी नहीं सोचा होगा कि 1984 में मात्र 2 सीट जितने वाली पार्टी 2014 आते- आते कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकेगी. 1984 के बाद हुये चुनावों में भाजपा ने लगातार बढ़ोतरी किया.

भाजपा के दिन बदलने में लालकृष्ण आडवाणी औऱ अटल बिहारी वाजपेयी का महत्वपूर्ण योगदान हैं. आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन से भाजपा में नयी जान फूंक दी. 1984 में दो सीटों पर सिमटी बीजेपी को 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद भी आडवाणी और वाजपेयी के जुगलबंदी ने ही चखाया. 1996 के लोकसभा चुनाव में BJP को 161, 1998 में 182 सीट मिली और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने..2004 में भाजपा की सीटें घटकर फिर 138 हो गईं. 2009 में सीटें और भी कम होकर 116 पर आ गईं. लेकिन 2014 में मोदी मैजिक के कारण भाजपा ने अपनी सबसे ज्यादा 282 सीटें हासिल कीं. यह कुल सीटों के मुकाबले 52% थीं. इसी के साथ भाजपा के स्वर्णिम काल का उदय भी हो गया वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 303 सीटें जीतकर मजबूत सरकार फिर से बनाया…

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