महात्मा गांधी के आलोचक हमेशा से यह इल्ज़ाम उनपर लगाते आये है, गांधी चाहते तो भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी रुक सकती थी. इस आलेख में हम यही पड़ताल करेंगे.
महात्मा गांधी अहिंसा के समर्थक थे. गांधी को किसी भी हालत में हिंसा स्वीकार नहीं था. भगत सिंह, सुखदेव , राजगुरु भी गांधी के नजर में हिंसक थे. गांधी चाहते थे, आजादी के यह सभी मतवाले हथियार डाल कर अहिंसा के रास्ते पर उनके साथ आ जाये. भगत सिंह और उनके साथियों पर एसेम्बली में बम फेंकने के अलावा अंग्रेज अधिकारी सैंडर्स के हत्या का भी आरोप था. यही कारण था कि भगत सिंह का पक्ष खुलकर रखने में महात्मा गांधी हिचकते थे. भगत सिंह और उनके साथियों के सजा को लेकर गांधी की जब कभी अंग्रेजी अधिकारियों से बात भी हुयी तो गांधी ने अंग्रेज अधिकारियों से सज़ा माफ करने के जगह सजा कम कराने और टालने की अपील की थी..
भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा जेल में चले भूख हड़ताल और कोर्ट में पेशी के दौरान उनके बेबाक अंदाज का देश कायल बन चुका था. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु युवा दिलों की धड़कन बन गए थे. अंग्रेजी हुकूमत ने इसी बीच भगत और उनके साथियों को फांसी की सजा सुना दी.. अंग्रेजी फरमान के अनुसार 24 मार्च 1931 को भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दिया जाना था. भगत और उनके साथियों की सज़ा रुकवाने की अपील करने को महात्मा गांधी पर भी दबाव बढ़ रहा था. गांधी ने अंग्रेजी वायसराय से भगत सिंह और उनके साथियों के सजा को टालने की अपील भी की थी.
भगत सिंह और उनके साथियों के बढ़ते लोकप्रियता से अंग्रेजी हुकूमत को डर लगने लगा था. महात्मा गांधी ने 23 मार्च को अंग्रेजी वायसराय को एक निजी पत्र लिखा उस पत्र में गांधी जी ने अपने दिल की सारी बात उड़ेलकर कर रख दिया और भगत सिंह और उनके साथियों के सजा को टालने की अपील की. अंग्रेज भगत सिंह और उनके साथियों की लोकप्रियता से इतने डर गए थे की उन्होंने भगत और उसके साथियों को तय तारीख़ से एक दिन पहले ही 23 मार्च 1931 को ही फाँसी दे दिया..
महात्मा गांधी जब 24 मार्च 1931 को कांग्रेस के कराची अधिवेशन में शामिल हुए तो उन्हें लोगो का बहुत विरोध झेलना पड़ा. युवाओं ने उनपर इल्जाम लगाए की गांधी चाहते तो भगत और उनके साथियों की फांसी रुक सकती थी. 24 मार्च 1931 को आयोजित करांची अधिवेशन में गांधी जी ने उनपर इल्जाम लगाने वाले को जवाब देते हुए कहा.. वो चाहते थे कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की सज़ा टाल दी जाए इसके लिये उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास भी किया है..लेक़िन वो कभी भी किसी हिंसा के समर्थक का साथ नहीं दे सकते.