धर्म- कर्म

समुंद्र मंथन कि पूरी कहानी, शिव के नीलकंठ नाम का रहस्य .

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शंकर, शिव, भोलेनाथ और नीलकंठ सहित ना जाने कितने नामों से हम उन्हें बुलाते हैं, पर आखिर इसके पीछे की वजह क्या है. हम उन्हें आखिर नीलकंठ क्यों कहते हैं? बता दें कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है.


उत्तराखंड के ऋषिकेश में हिमालय का प्रवेश द्वार है. वहीं से यह सारी कहानी शुरू होती है, जहां पर एक नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है, जो कि उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिव मंदिरों में से एक माना जाता है. इसी ऋषिकेश के पास मनीकूट पर्वत पर समुद्र मंथन किया गया था. बता दें कि इस मंथन के दौरान देवता और राक्षस ने केवल अमृत की उम्मीद की थी, लेकिन अमृत के साथ-साथ उस समुद्र मंथन से जहर भी निकला और यह विश इतना खतरनाक था कि इसकी मात्र एक बूंद ही पूरी दुनिया को समाप्त कर सकती थी, जिसके बाद देवता और दानव में हड़कंप के साथ-साथ डर की लहर फैल गई, फिर वह भगवान शिव के पास पहुंचे और उन्हें सारी बातें बताइ, जिसे सुनते ही भगवान शिव ने विष का प्याला पीने का फैसला लिया और एक ही बार में विष का पूरा घड़ा पी गए.

कहा जाता है कि इसी दौरान जो विष उन्होंने पिया था उसके बाद उनका गला पूरी तरह से नीला हो गया था, तभी से उन्हें पूरी दुनिया नीलकंठ के नाम से जानती है. जिस वक्त भगवान शिव ने विष का प्याला पिया था उस वक्त उनकी अर्धांगिनी माता पार्वती ने उनका गला दबा दिया था ताकि वह विष भगवान शिव के पेट तक ना पहुंचे और नतीजा यह हुआ कि यह विष भगवान शिव के गले तक ही रह गया.

यही से देवों के देव महादेव कहलाने वाले भगवान शिव को हम संहार का देवता भी कहते हैं. कहा जाता है कि शिव ही गुरु है और अत्यंत भोले होने के कारण हम उन्हें भोलेनाथ नाम से भी बुलाते हैं.

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