किस्सा- कहानी

आख़िर किसने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगाया –

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वह दिन जीते जी मौत से कम नहीं होता जब अपना घर बार सब कुछ छोड़कर मजबूरी में इंसान को कहीं और जाना पड़े. कुछ इसी तरह का अत्याचार कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ. भले ही आज देश में कितनी सरकारें आई और गई पर आज तक कश्मीरी पंडितों को न्याय नहीं मिल पाया.


कश्मीरी पंडितों के पलायन की कहानी आज किसी से भी नहीं छुपी है. आज भी जब इस बात की चर्चा निकलती है तो लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं, क्योंकि उस वक्त इन कश्मीरी पंडितों के पास अपना धर्म बदलने, मरने और पलायन करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.

साल 1990 जनवरी का वह महीना जिसमें लोगों ने नई सोच और नई उम्मीद के साथ नए संकल्प लिए, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि यह महीना इतना दुख दर्द भरा होगा. यह वही महीना था जब जिहादी इस्लामिक ताकतों ने कश्मीरी पंडित पर जमकर जुल्म बसाया और उन्हें पलायन करने पर मजबूर किया. इतना ही नहीं इस बीच सैकड़ों से भी ज्यादा कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतारा गया. कई महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उनकी हत्या की गई. सबसे शर्म की बात तो यह है कि जिस वक्त कश्मीरी पंडितों के साथ इस तरह की घटना हो रही थी तो उस वक्त ना ही तो पुलिस और ना ही प्रशासन सामने आ रहा था. सभी ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे.

रिपोर्ट में मिली जानकारी के अनुसार 300 से भी ज्यादा कश्मीरी पंडितों को साल 1989 से 1990 के बीच मारा गया था, लेकिन इसके आगामी वर्षों में भी पंडितों पर नरसंहार कम नहीं हुए. साल 1998 में और 2003 में एक बार फिर से कश्मीरी पंडित हो पर हुए जुल्म की खबर ताजा होती नजर आई. आज इतने साल बीत गए हैं पर इन कश्मीरी पंडितों ने जो केस दर्ज करवाया था उसमें से किसी भी केस पर कार्रवाई नहीं की गई है.

इस तरह की आक्रमक परिस्थिति के बाद नतीजा यह निकला कि कश्मीरी पंडितों ने अपने घाटी को छोड़ दी और करोड़ों से भी ज्यादा मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़कर किसी छोटे-मोटे झोपड़े या कहीं अन्य जगह पर रहने लगे.
उस वक्त कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजे पर यह लिख दिया जाता था कि या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो.
यह वही दौर था जिस वक्त भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की हत्या कर दी गई थी.

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