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कहानी बाबा वैधनाथ की, कैसे देवघर में स्थापित हुआ ज्योतिर्लिंग.

धर्म- कर्म

कहानी बाबा वैधनाथ की, कैसे देवघर में स्थापित हुआ ज्योतिर्लिंग.

बाबा वैधनाथ धाम जो झारखंड के देवघर में स्थित है. वहां की कई ऐसी मान्यताएं हैं कि आप जानकर चौक जाएंगे. पूरे भारत में यह पहला ऐसा स्थान माना जाता है जहां पर ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया है और साथ ही शक्ति पीठ भी है, पर क्या आप जानते हैं कि बैजनाथ धाम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना किसने की थी.

शिव पुराण के अनुसार यह कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान विष्णु द्वारा की गई थी.
यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ लौट कर नहीं जाता है, फिर चाहे कोई भी परेशानी हो. संतान की मनोकामना हो या फिर शांति, सुख, समृद्धि की चिंता यहां पर आने से सारे कष्ट मिट जाते हैं.बाबा वैधनाथ को अन्य कई नामों से बुलाया जाता है, जिसमें हार्द पीठ सबसे ज्यादा प्रचलित है. इसके पीछे भी एक गहरी कहानी है. कहा जाता है कि जब सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ किया तो उसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था. यह बात जानने के बावजूद माता सती वहां जाने की जिद कर रही थी, जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने कहा यह उचित नहीं है. इस विषय पर उन्होंने सती को बहुत समझाया कि बिना निमंत्रण कहीं पर भी जाना हमारे लिए उचित नहीं होगा पर सती ने उनकी एक नहीं मानी. सती का कहना था कि अपने पिता के घर जाने के लिए किसी भी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है. आखिरकार लाख मना करने के बाद भी सति जी उस यज्ञ में गई और वहां कुछ ऐसा हुआ जो इतिहास बन गया.

जब सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में पहुंची तो अपने पति का घोर अपमान सुनकर वह सहन नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में कूद पड़ी, जब इस बात की खबर भगवान शिव को मिली तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और शिव ने आक्रोश ने आकर सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करना शुरू कर दिया.
यहीं पर उनका गुस्सा शांत करने के लिए श्री हरि ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित किया और इसी स्थान पर देवी सती का हृदय जा गिरा था इसलिए यह हार्द पीठ कहलाता है.

एक मान्यता यह भी है कि अपने अहंकार में चूर रावण के मन में एक बार ख्याल आया कि वह अगर भगवान शिव को लंका ले कर चला जाता है तो वह सदा के लिए संपन्न हो जाएगा, जिसके बाद कैलाश पर्वत पर उसने कड़ी तपस्या करनी शुरू कर दी और नतीजा भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए, जिसके बाद रावण को लिंगाकार एक पत्थर दिया गया और कहा गया कि यदि तुमने इसे पृथ्वी की किसी की सतह पर रखा तो वह उसी स्थान पर रह जाएगा.
रावण इस पत्थर को लेकर लंका जा ही रहा था तभी रास्ते में उसे मल मूत्र का आभास हुआ. इसी बीच ब्राह्मण के वेश में भगवान विष्णु वहां जा पहुंचे. रावण ने उन्हें नहीं पहचाना और उनके हाथ में वह पवित्र पत्थर रख दिया और कहा कि वह थोड़ी देर में आता है, आप इसे संभाल के रखें. भगवान विष्णु ने उस लिंग को यह कह कर जमीन पर रख दिया कि अब इस पत्थर का भार उनसे सहन नहीं हो रहा है.
देखा जाए तो यह भगवान विष्णु की एक महिमा थी. वह नहीं चाहते थे कि रावण इस लिंग आकार पत्थर को लेकर लंका जाए और फिर यही शिवलिंग की स्थापना हुई.

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