फोकट का ज्ञान
जब भारत में सरकार कराने लगी थी लोगों की जबरदस्ती नसबंदी, इंदिरा राज्य में नसबंदी कानून की हकीकत.
जब भी हम देश में इंदिरा गांधी के शासन की बात करते हैं तो उनके द्वारा देश में किया गया आपातकालीन का फैसला हर किसी के जहन में दौड़ जाता है. 25 जून 1975 का दिन कोई आम दिन नहीं था. इसे यूं ही भारतीय लोकतंत्र का काला दिन नहीं कहा जाता है, क्योंकि इस दिन से भारतीय नागरिक के अधिकार छीन लिए गए थे, उन्हें अपना फैसला लेने का कोई हक नहीं था और देश के हर कोने में एक देशव्यापी विरोध शुरू होने लगा.
इस आपातकालीन ने केवल आम लोगों और राजनीतिक दल को ही नहीं बल्कि भारत के पूरे व्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया था.
आपको बता दें कि देश में इमरजेंसी लागू करने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण था, क्योंकि 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी द्वारा जो धांधली की गई थी उसमें उन्हें दोषी पाया गया और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर उनके प्रतिबंध लगा दिया.
इसके साथ ही उन्हें किसी भी पद का कार्यभार संभालने की अनुमति नहीं थी. इसीके बाद उन्होंने देश में इमरजेंसी लागू कर दी, जिसके बाद अचानक फैसला आता है की भारत की घनी आबादी को रोकने के लिए हजारों- लाखों लोगों की नसबंदी की जाएगी और इस नसबंदी का पूरा कार्यभार और नेतृत्व संजय गांधी को कराना था.
यह वो समय था जिसमें संजय गांधी को अपने आपको साबित करना था.
ये नसबंदी का वह दौर था जिस दौर मे पुलिस द्वारा खींचकर आम लोगों की नसबंदी की जा रही थी. संजय गांधी की ओर से एक अभियान चलाया गया था, जिसमें 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई. इतना ही नहीं गलत ऑपरेशन की वजह से इसमें 2000 से भी ज्यादा लोगों को मौत का सामना करना पड़ा.कहा जाता है कि संजय गांधी ने अपने आप को प्रभावी और महत्वाकांक्षी नेता साबित करने के लिए यह कदम उठाया था और उन्होंने इस कदम को परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण का एक बहुत बेहतरीन उपाय बताया था.