किस्सा- कहानी
कल्पना चावला की मौत की पूरी कहानी, अंतरिक्ष से लौटते वक्त कैसे हुई दुर्घटना
खुद को अंतरिक्ष के लिए समर्पित कर देने वाली कल्पना चावला ये हमेशा कहा करती थी कि “मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं और इसी के साथ मरूंगी”.
17 मार्च 1962 को हरियाणा परिवार में जन्मी कल्पना चावला ने अपनी शुरुआती पढ़ाई के दौरान ही यह तय कर लिया था कि उन्हें इंजीनियर बनना है और वह अपने इस लक्ष्य को लेकर काफी स्पष्ट भी थी. हालांकि उनके पिता कल्पना चावला को शिक्षक बनाना चाहते थे, पर उन्होंने अपने पिता की बात नहीं मानी, जहां पंजाब की इंजरिंग कॉलेज में उन्होंने ग्रेजुएशन किया और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गई.
साल 1995 को वह क्षण आ गया जब नासा में एक अंतरिक्ष यात्री के तौर पर कल्पना चावला शामिल हुई थी.
कल्पना चावला ने दो बार अंतरिक्ष की यात्रा की थी. अपनी पहली यात्रा 1997 के दौरान उन्होंने लगभग 372 घंटे अंतरिक्ष में बिताए थे और दूसरी बार जब 16 जनवरी 2003 को उन्होंने अपनी यात्रा की शुरुआत की तब फरवरी महीने में लौटते वक्त उनके विमान की दुर्घटना हो गई और फिर कल्पना चावला कभी भी लौट नहीं पाई.
अपने काम को लेकर कल्पना चावला बेहद उत्साहित रहती थी. उनमें आलस और असफलता का डर बिल्कुल भी नजर नहीं आता था. यही वजह है कि आज हमारे बीच न रहकर भी वह हमारे लिए एक मिसाल बन चुकी है. आज भी उनकी कही हुई बातें लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का आधार बन चुका है और वह कल्पना चावला ही थी जिसने इस मिशन से पूरी दुनिया को अपना और भारत का मुरीद बना दिया था.
कहा जाता है कि जब अंतरिक्ष में अपनी सफलता के झंडे गाड़कर कल्पना चावला अपने देश भारत लौट रही थी तो पूरे बेसब्री से उनका इंतजार किया जा रहा था, पर वह इंतजार बस इंतजार ही रह गया. यह किसी ने नहीं सोचा था कि हर भारतवासी की खुशी मातम में बदल जाएगी, जब यह पता चला कि कोलंबिया के पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने से तापमान अनुचित हो गया और भारत की भूमि पर पहुंचने से महज 16 मिनट पहले विमान में अचानक धमाका हुआ और विमान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया. इसके बाद विमान इतने टुकड़ों में बट गया कि उसकी गिनती करना भी मुश्किल था.
इस विमान में कल्पना चावला समेत हमने छह अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को भी खो दिया था.