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बछेंद्री पाल – माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली महिला की अविश्वसनीय कहानी

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बछेंद्री पाल – माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली महिला की अविश्वसनीय कहानी

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 24 मई 1954 को जन्म लेने वाली बछेंद्री पाल ने जो काम किया, वह लाखों महिलाओं के लिए उनकी सपनों की उड़ान बन चुका है. 30 मई 1984 का दिन शायद कोई भी नहीं भूल सकता है, क्योंकि यह वही दिन था जिस दिन पर्वतारोही बछेंद्री पाल ने माउंट एवरेस्ट को फतह किया था और इतिहास के पन्नों में वह नाम दर्ज किया है जो कभी मिट नहीं सकता है.आपको एक चौंकाने वाली बात बता दे कि बचपन से ही उन्हें ऊंचाई पर चढ़ाई करने का बेहद ही शौक रहा था. यही वजह है कि जब वह अपनी स्कूल की तरफ से एक पिकनिक पर गई थी तो उस वक्त महज 12 साल की उम्र में ही उन्होंने 13123 फुट ऊंची चढ़ाई की थी, जिसके बाद एनआईएम में प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने गंगोत्री में 21900 फुट और रुद्रगौरा में 19091 फुट ऊंची चढ़ाई करके अपना परचम लहराया.


साल 1984 में जब एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए लोगों का चयन किया गया था तो उस बीच बछेंद्री पाल एकमात्र ऐसी महिला थी जिन्होंने सबसे ऊपर तक चढ़ाई की थी और दोपहर 1:10 पर उन्होंने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर भारतीय तिरंगा लहराकर यह साबित कर दिया कि हौसलों में जान हो तो इंसान आसमान को भी छू सकता है.

कहा जाता है कि बछेंद्री पाल के प्रभावशाली होने के बावजूद भी उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में नौकरी नहीं मिलने के कारण उन्होंने निराश होकर माउंटिंग कोर्स किया और यहीं से उनके जीवन की रेखा बदल गई, जहां कुछ समय बाद उन्हें एक इंस्ट्रक्टर के रूप में नौकरी मिल गई और यहीं से उन्होंने माउंट एवरेस्ट फ़तह करने का सफर तय किया.
हालांकि इस बीच उन्हें परिवार और समाज के कई तरह से ताने सुनने पड़े पर वह इन सभी बातों को नजरअंदाज कर अपने रास्ते पर चलती रही.



शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि जब बछेंद्री पाल ने पर्वतारोही बनने का फैसला लिया तो परिवार वाले की तरफ से उनके इस फैसले का विरोध किया गया था और परिवार वालों की चाहत थी कि वह एक शिक्षक बने पर बछेंद्री पाल ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने अपने बुलंद हौसले को अपनी काबिलियत बनाकर उसे साबित किया.

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