एक था खलनायक
एक प्रोफेसर कैसे बना आतंकवादी, अफजल गुरु के आतंकी बनने की कहानी.
अफजल गुरु जो जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले में रहने वाला था उसकी कहानी बेहद ही चौंकाने वाली है, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर के तौर पर भी काम कर चुका था और बाद में उसने किस प्रकार आतंकी बनने की ट्रेनिंग ली और भारत में संसद भवन को गोलियों से उड़ाने का प्लान बनाया.
13 दिसंबर 2001 का वह दिन जब भारत के संसद भवन पर आतंकी हमला हुआ था और यह आतंकी हमला करने वाला कोई और नहीं बल्कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहा अफजल गुरु था, जो लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ा हुआ था. उस दिन एम्बेसडर गाड़ी में सवार होकर अफजल गुरु कई आतंकवादियों और हथियारों के साथ संसद पर हमला करने पहुंचा था. इस आतंकी हमले में दिल्ली पुलिस के 6 जवान, संसद भवन के दो सुरक्षाकर्मी और एक माली भी आतंकियों के हाथों मारा गया.
इस घटना के बाद जब 15 दिसंबर को अफजल गुरु को पुलिस ने दबोचा तो यह क्षण उसके पूरे जीवन का अंत लेकर आ गया था, जहां साल 2002 में उसे फांसी की सजा सुनाई दी गई और उसके शव को तिहार जेल में दफना दिया गया.
गलत के रास्ते पर चलने वाले अफजल गुरु ने गलत रास्ते को इस तरह अपना लिया था कि उसका अंत होना तय हो चुका था.
अपने मां-बाप के सपनों को पूरा करने के लिए अफजल गुरु ने प्रीमेडिकल परीक्षा दी और उसमें अच्छे अंक भी हासिल किए, जिसके बाद उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई की. इसी बीच उसने अपना रास्ता बदल दिया और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का सदस्य बन गया और धीरे-धीरे उसने अपने संपर्क आतंकियों से बनाने शुरू कर दिए और आतंकवाद की ट्रेनिंग भी लेने लगा, पर कहा जाता है कि अफजल गुरु जितना आतंकवाद से पीछा छुड़ा कर भाग रहा था आतंकवाद उतना ही उसका पीछा कर रहा था, तब तक अफजल का सामना ऐसे कई लोगों से हो चुका था जिसने उसे पूरी तरह आतंकवाद के लिए प्रेरित कर लिया था और धीरे-धीरे अफजल गुरु वह शख्स बन गया जो किसी भी वारदात को अंजाम देने के बाद अपनी मौत की चिंता नहीं करता था.
जब इस घटना को लेकर अफजल गुरु पुलिस के हाथों चढ़ा तो केवल एक नहीं बल्कि उसने कई लोगों के नाम उगले, जब फोन डिटेल्स और हर तरह की छानबीन की गई तो इस मामले के अन्य आरोपी को भी गिरफ्तार किया गया, जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ए आर गिलानी भी शामिल थे.