किस्सा- कहानी
कैसे हुआ था भोपाल गैस त्रासदी, जिसका दंश आज-तक झेल रहे लोग.
भोपाल गैस त्रासदी की वह घटना जिसमें लोगों ने हर पल अपने सामने मौत को देखा और धीरे-धीरे यह मंजर तबाही में बदल गया. आज भी जब इस घटना का जिक्र होता है तब केवल भोपाल वालों की ही नहीं बल्कि पूरे देश की आंखों में आंसू आ जाते हैं, क्योंकि अपनी आंखों के सामने हर जगह मौत ही मौत देखना किसी के लिए भी आसान नहीं था.
सबसे खौफनाक औद्योगिक दुर्घटना के पीछे की वजह थी कि अचानक आधी रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का लीक होना शुरू हो गया था और यह जहरीली गैस लोगों के घरों में धीरे-धीरे इस कदर हवा की तरह फैल गया कि कई लोग नींद में ही मौत के साथ सो गए और कुछ लोग बाहर आए तो खासते- खासते और हाफ्ते हाफ्ते मर गए.
यह वो दिन था जब सड़कों पर लाशों की बौछार पड़ी थी, जिसने हजारों लोगों को विकलांग बना दिया और कई लोगों की जान ले ली, जिसका दंशआज भी खत्म नहीं हुआ है. 2 से 3 दिसंबर की रात भोपाल के लोगों के लिए वह रात थी जब लोगों ने अपनी आंखों के सामने अपनी मौत को देखा था. जब यह हादसा हुआ तब इत्तेफाक कुछ ऐसा था कि फैक्ट्री का अलार्म सिस्टम भी खराब पड़ा था. एक यह भी वजह थी कि लोगो को चेतने का मौका नहीं मिल पाया.
हर मिनट बीतने के साथ-साथ लोगों के मौत का आंकड़ा और बढ़ता जा रहा था, पर यह किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हुआ है और देखते ही देखते 2 दिन में 50000 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई.
भोपाल गैस त्रासदी के पीछे जिसका हाथ था उसमें वॉरेन एंडरसन मुख्य थे, जो उस कंपनी के सीईओ थे. इस त्रासदी के लिए उन्हें 6 दिसंबर 1984 को गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें 7 दिसंबर को सरकारी विमान से दिल्ली भेजा गया और वहां से फिर वह अमेरिका चले गए और फिर वह कभी लौट के नहीं आए, जहां कुछ समय बाद कोर्ट ने उन्हें फरार घोषित कर दिया था और 29 सितंबर 2014 को उनकी मृत्यु हो गई.
यह बात हर किसी को डराने वाला है कि आज भी यहां 350 टन के जहरीले कचरे का ढेर पड़ा है, जो लोगों को हर दिन बीमार कर रहा है, लेकिन प्रशासन की तरफ से इस कचरे के ढेर को हटाने के लिए किसी तरह की कोई पहल नहीं की जा रही है.