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बिहार के भागलपुर का चर्चित आंख फोड़वा कांड –

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भागलपुर का आंखफोड़वा कांड उन कांड में से एक है, जिसे याद करने के बाद आज भी लोग सहम जाते हैं. किसी बंदूक या हथियार नहीं बल्कि तेजाब को अपना हथियार बना कर पुलिस ने लोगों का नरसंहार किया था. बिहार के भागलपुर में जो आंख फोड़वा कांड हुआ था उसकी तस्वीर आज भी लोगों के दिल में ताजा है. आज भी ऐसे कई लोग जीवित है जो इस घटना के साक्षी है. आइए आपको उस दर्दनाक मौत की कहानी की ओर ले चलते हैं.


यह वो दौर था जब बिहार का भागलपुर अपराध का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका था, जो एक वक्त में इतना खौफनाक हो गया था कि खाकी वर्दी पहनने वाले पुलिस के पास भी कोई विकल्प नहीं बचा था और बाद में पुलिस ने जिस हथियार को अपनाया उसका खौफ शायद आज तक लोगों के दिल से नहीं निकल पाया है.
कहा जाता है कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह थी, क्योंकि जो अपराधी पुलिस के गिरफ्त में आते थे वह अपने रसूखो के कारण छूट जाते थे, जिसके बाद भागलपुर में एक दर्दनाक मंजर का आगाज हुआ.

इसके बाद वहां की पुलिस ने अपराधियों को पकड़कर उनकी आंखों में तेजाब डालना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे पुलिस के लिए तेजाब उनका हथियार बन चुका था. साल 1980 में भागलपुर में इस तरह की घटना की शुरुआत हुई. भागलपुर के आंख फोड़वा कांड पर बॉलीवुड में कई फिल्में भी बन चुकी है, जिसमें “गंगाजल” और “द आइस ऑफ डार्कनेस” है. यह वो समय था जब अपराधी खाकी देखकर ही कांप जाते थे, लेकिन कुछ लोग और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह कहा जाता है कि आपराधिक घटनाओं में इसके बाद काफी कमी आई पर पुलिस का जो अमानवीय चेहरा सामने आया वो हर किसी के लिए खौफनाक था.

ये जरूर कहा जाता है कि अपराधियों को सजा देना कानून का काम है, पर उसके लिए एक उचित मापदंड भी है. इस तरह से तेजाब का इस्तेमाल करके नहीं……
यही वजह है कि आज भी आंखफोरवा कांड की चिंगारी सुलग रही है. आपको बता दें कि भागलपुर का आंखफोरवा कांड जयराम के खिलाफ कानून से परे जाकर यह कदम उठाया गया था, जिसमें कुल 31 लोगों के साथ यह बर्बरता की गई थी.
आपको एक और बात भी बता दे कि केवल आंखों में तेजाब डालने का सिलसिला नहीं था. साइकिल के स्कोप और तरह-तरह के औजारों का भी इस्तेमाल अपराधियों की आंखों को खत्म करने के लिए किया जाता था, जहां अपराधी प्रवृत्ति वाले लोगों को पहले जेल में रखा जाता था और रात में उनकी आंखों को फोड़कर तेजाब से जला दिया जाता था. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि सब कुछ देखते हुए भी सरकार चुपचाप तमाशा देखते रहती थी.

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