बिहार के रणवीर सेना जैसे संगठन के उदय को लेकर काफी रोचक कहानी है, जिसका गठन ब्रह्मेश्वर मुखिया द्वारा साल 1994 के अंत में किया गया था. कहा जाता है कि बिहार की जातिगत लड़ाईयो में ब्रह्मेश्वर मुखिया वह चेहरा थे, जो सबसे चर्चित रूप से उभरे थे, जो मुख्य रूप से भोजपुरी जिले के खोपिडा गांव के रहने वाले थे.
कहा जाता है की जब बिहार में नक्सली संगठन और बड़े किसानों के बीच तकरार खूनी लड़ाई तक पहुंच गई थी तो इस बीच बरमेश्वर मुखिया के नेतृत्व में रणवीर सेना का उदय हुआ था. एक वक्त यह भी था जब इस संगठन को केवल भूमिहार किसानों की निजी सेना कहा जाता था.
रणवीर सेना की भिड़ंत सबसे ज्यादा नक्सली संगठन से हुआ करती थी और यह भिड़ंत धीरे-धीरे इतनी विकराल रूप में पहुंच गई कि राज्य सरकार ने इस पर रोक लगा दी. आपको लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की ओर ले चलते हैं जो 1 दिसंबर 1997 को हुआ था. इसमें लगभग 58 दलित मारे गए थे, जिसके बाद परमेश्वर मुखिया को इसमें दोषी मानते हुए गिरफ्तार किया गया था और 9 साल तक उन्हें जेल में रखा गया था, जब सजा काटने के बाद वह रिहा हुए तो उसके बाद उन्होंने लोगों को जुटाना शुरू किया, जिसमें अलग-अलग जगहों से लोग शामिल होने लगे और नक्सलियों के खिलाफ संघ बनना शुरू हो गया. आपको बता दें कि रणवीर सेना के उदय का एकमात्र उद्देश्य जमींदारों के जमीनों की रक्षा करना था, जिसकी शुरुआत मध्य बिहार के भोजपुर जिले के गांव बेलाऊर में हुई थी.
बरमेश्वर मुखिया के रणवीर सेना पर कई तरह के नरसंहार करने के आरोप भी लगे, जिसमें लक्ष्मणपुर बाथे में 58 लोगों की मौत का मामला सहित कई मामले शामिल थे.
1 जून 2012 की सुबह जब ब्रह्मेश्वर मुखिया सुबह 4:00 बजे सैर करने निकले थे तो हथियारों के साथ अपराधियों ने उन्हें बीच रास्ते पर रोककर 5 गोलियों से भून डाला, जहां मौके पर उनकी मौत हो गई. बरमेश्वर मुखिया की मौत के बाद पूरे शहर में कानून व्यवस्था धीमा पड़ गया था. कई गाड़ियों को फूंका गया तो कई जगहों पर कर्फ्यू लगा दी गई. बरमेश्वर मुखिया की मौत के बाद काफी संख्या में लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई और हर जगह से उनके समर्थकों ने तांडव मचाना शुरू कर दिया था. हालांकि यह हाईप्रोफाइल मर्डर केस आज तक नहीं सुलझ पाया कि ब्रह्मेश्वर मुखिया पर गोली चलाने वाला शख्स आखिर कौन था.