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फणीश्वर नाथ रेणु कलम का एक फनकार, जिसके दिल में बसता था बिहार

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फणीश्वर नाथ रेणु कलम का एक फनकार, जिसके दिल में बसता था बिहार

4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया में जन्म लेने वाले फणीश्वर नाथ रेनू की कलम जब भी चली, तो वह इतिहास बन गई. इस इतिहास के साक्षी है तीसरी कसम, मैला आंचल और लाइट जैसी ऐतिहासिक कृतियां जिन्हें खुद अपने कलम से फणीश्वर नाथ रेनू द्वारा सजाया गया. एक साधारण परिवार में जन्म लेने वाले फणीश्वर नाथ रेनू ने अपने जन्म से ही आजादी की लड़ाई देखी और खूब संघर्ष किया. इतना ही नहीं साल 1950 में उन्होंने नेपाली क्रांतिकारी आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उन्हें हिंदी साहित्य में लेखन का खूब शौक था और अपने ही प्रतिभा को आगे बढ़ाते हुए साल 1936 में उन्होंने इसकी शुरुआत की, पर आंदोलन में गिरफ्तार होने के बाद उनकी रफ्तार रुक गई, जब वह वापस लौटे तो उन्होंने “बटबाबा” नामक अपनी पहली कहानी लिखी और यहीं से उनकी अलग दिशा तय हो गई.

फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं और कहानियों में एक साधारण सी बात होती थी, उसमें गांव का जिक्र जरूर होता था जिसे देखकर सारा का सारा माहौल एकदम जीवंत हो उठता था.
जब लोगों के बीच मैला आंचल की कहानी आई तो इसने हर किसी को चौंका दिया था और यहीं से साहित्य की दुनिया में फणीश्वर नाथ रेणु ने अपना कदम जमाना शुरू कर दिया.

आज अगर हम फणीश्वर नाथ रेणु की किसी भी कहानी और रचनाओं को उठाकर देखेंगे तो हमें गांव को देखने से ज्यादा जीने वाली प्रतिभा उसमें नजर आएंगी.
कहा जाता हे कि बिहार में जन्म लेने वाली फणीश्वर नाथ रेणु के दिल में बिहार बसता था. उन्होंने बिहार को बहुत ही बारीकी से समझा, फिर चाहे वह गरीबी हो या फिर अमीरी और इस पर कई तरह के साहित्य भी लिखें जो आज भी यह साबित करने के लिए जीवित है कि उस वक्त किस प्रकार की परिस्थिति में लोग अपना जीवन व्यतीत करते थे.

फणीश्वर नाथ रेणु की कलम से लिखी गई तीसरी कसम आज भी हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर माना जाता है. उन्होंने कुल मिलाकर 26 पुस्तकें लिखी, जिनमें से कई पर फिल्म भी बनी. फणीश्वर नाथ रेनू के लेखन में हिंदी, बांग्ला और नेपाली भाषाओं का खूब अच्छा संकलन नजर आता था.11 अप्रैल 1977 को फणीश्वर नाथ रेणु ने अंतिम सांस ली थी.

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