बिहार की राजनीति में सुरमा कहलाने वाले लालू यादव, रामविलास पासवान एवं हमारे माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जेपी आंदोलन की उपज माना जाता है. यही वजह है कि आज भी बिहार की राजनीति इन नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है फिर चाहे वह कोई भी वजह क्यों ना हो…
बात करते हैं साल 1975 की जब देश में आपातकाल की स्थिति थी यह वही क्षण था, तब देश की राजनीति में ऐसे- ऐसे धुरंधर आगे आएं जो आज तक लोगों के बीच अपनी अलग विचारधारा के लिए मशहूर है. जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल के खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत की थी और इसी आंदोलन में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान जैसे नेताओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था और यहीं से उनके राजनीति के एक नए दौर की शुरुआत हुई.
जिस वक्त जयप्रकाश नारायण द्वारा आंदोलन चलाया जा रहा था तो उस वक्त नीतीश कुमार महज 24 साल के थे और उससे पहले उनका राजनीति से कोई जुड़ाव नहीं था, लेकिन जेपी आंदोलन ने लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान सहित कई नेताओं की किस्मत पलट दी और वह जयप्रकाश नारायण ही थे जिन्होंने इन नेताओं को राजनीति का पहाड़ा सिखाया था.
हमारे बीच आज अनुपस्थित रहे रामविलास पासवान की पहचान एक ऐसे व्यक्ति के रूप में हुई जो समाज के निचले और वंचित तबके के लोगों का मुद्दा उठाया करते थे. यही वजह है कि रामविलास पासवान को उनके इस कार्य ने साल 1969 को विधायक बना दिया और उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विशाल जीत दर्ज की. हालांकि ठीक इसके 11 साल बाद साल 1980 में लालू प्रसाद यादव पहली बार विधायक बने. इससे पहले 1977 में वह सांसद बन चुके थे, जिसके बाद आखिर में 1985 को नीतीश कुमार को विधायक की कुर्सी मिली और यहीं से इन्होंने बिहार की राजनीति में राज करना शुरू कर दिया.
धीरे- धीरे लालू यादव और नीतीश कुमार ने जब अपनी सियासी पारी का आगाज किया तो वह धीरे-धीरे इसे लेकर केंद्र तक जा पहुंचे और केंद्र में भी उन्होंने जमकर अच्छी जीत दर्ज की.
यह वही जयप्रकाश नारायण थे जिनकी क्रांति देश में इस प्रकार फैली कि कांग्रेस को सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा और उधर बिहार में उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी ने देश के कोने- कोने में धड़कना शुरू कर दिया. इस क्रांति और आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार, अशिक्षा का अभाव जिसमें बिहार के कई दिग्गज नेताओं का उदय हुआ.