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भारतीय संविधान में क्या था संपत्ति का अधिकार, क्यों नहीं है ये अब मौलिक अधिकार –

फोकट का ज्ञान

भारतीय संविधान में क्या था संपत्ति का अधिकार, क्यों नहीं है ये अब मौलिक अधिकार –

भारतीय संविधान में भी एक ऐसा अधिकार हुआ करता था जिसे कुछ समय बाद समाप्त कर दिया गया और वह था “संपत्ति का अधिकार” जिसे अनुच्छेद 300 (ए) के तहत संविधान में शामिल किया गया था, जहां अनुच्छेद 31 के तहत लोगों को संपत्ति का अधिकार प्राप्त था, जिसमें अनुच्छेद 31(1) में यह बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति को विधि के प्राधिकार के बिना संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा, जब तक इसके लिए कानून नहीं बन जाता है. वही अनुच्छेद 31(2) के तहत इन बातों का जिक्र किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को उसके संपत्ति से वंचित तभी किया जाएगा जब तक किसी तरह से उस जमीन का अधिग्रहण नहीं हो जाता है.

यह एक ऐसा अधिकार रहा जो सविधान की सर्वाधिक विवादित अनुच्छेदों में से एक हैं और एक मात्र यह ऐसा मौलिक अधिकार जिसे हटा दिया गया है. संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों से हटाने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि जब सरकार को यह आभास होने लगा कि विकास कार्य में उन्हें जब आम आदमी की जमीन की आवश्यकता होती थी तो कहीं ना कहीं मौलिक अधिकारों के कारण सरकार उस जमीन को लेने में सक्षम नहीं हो पाती थी. इसलिए यहीं से 44 वें संशोधन के बाद यह फैसला लिया गया की संपत्ति के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों में से हटाकर महज इसे केवल एक अधिकार बताया गया है.


आपको एक जरूरी बात बता दे कि भले ही आज संपत्ति का अधिकार हमारे लिए मौलिक अधिकारों में नहीं रहा पर इसके बाद भी राज्य किसी भी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकारों का पालन करके ही वंचित कर सकता है.

इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय की ओर से यह निर्णय लिया गया था कि किसी भी संपत्ति पर हम अपने स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते हैं. इस अधिकार से पहले यह देखा जाता था कि अगर किसी व्यक्ति की जमीन पर किसी अन्य व्यक्ति का 12 वर्ष से अधिक तक कब्जा रहा है और उसके मालिक द्वारा उस 12 वर्ष में किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया गया है तो फिर कब्जा जमाने वाले उस व्यक्ति को कानूनी तौर पर मालिक का हक दे दिया जाता था, जहां सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे साफ-साफ खारिज किया जा चुका है.

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