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जीरो के अविष्कार से संबंधित जानकारी, जाने कैसे हुआ इसका भारत में अविष्कार –
जीरो के आविष्कार से पूरी दुनिया में जो क्रांति आई वह आज किसी से छुपी नहीं है. भारत में शून्य का आविष्कार आर्यभट्ट द्वारा किया गया था, पर इस विषय में यह भी कहा जाता है कि आर्यभट्ट शून्य के आविष्कार को लेकर किसी तरह का कोई स्पष्ट सिद्धांत नहीं दे पाए थे इसी के लिए इसका मुख्य श्रेय ब्रह्मगुप्त को दिया जाता है, जो अपने शुरुआती दौर से ही शून्य से जुड़े सभी सिद्धांतों को बिल्कुल सही तरीके से पेश कर पाए थे, लेकिन इसके बाद भी आर्यभट्ट को ही शून्य का जनक माना जाता है, क्योंकि 476 ईसा पूर्व में आर्यभट्ट ने अपने एक थ्यूरी में शून्य का साफ-साफ जिक्र किया था और एक से अरब तक की संख्या को बताया ही नहीं बल्कि लिखा भी था, जिसमें स्थाना स्थानम दस गुणम था जिसका मतलब है प्रत्येक आगे आने वाली संख्या पिछले संख्या से 10 गुना अधिक होगी और यहीं से आर्यभट्ट शून्य के अविष्कारक के रूप में माने जाने लगे. इतना ही नहीं यहीं से पूरे दुनिया में गिनती और भी ज्यादा आसान होने लगी.
एक तर्क यह भी दिया जाता है कि शून्य के अविष्कार से कई साल पहले भी इसका इस्तेमाल होता आया है, वरना रामायण में रावण का 10 सिर और महाभारत में कौरवो की संख्या 100 का वर्णन किस आधार पर किया गया होगा.
628 ईसा पूर्व में शून्य का आविष्कार जरूर हुआ, पर शून्य के अविष्कार के बाद भी इसका उपयोग नहीं किया जाता था. इसके पीछे एकमात्र वजह यह थी कि लोग इससे अवगत नहीं थे. धीरे-धीरे इसे लेकर जागरूकता होने के बाद इसका उपयोग बढ़ा. शून्य जिसका आविष्कार 5 हजार साल पहले हो चुका था उससे पहले धरती पर जीवन अजीब तरीके से गुजर रहा था. हर कोई अपने- अपने हिसाब से जी रहा था, लेकिन शून्य के आविष्कार के बाद यह गणित का एक अभिन्न अंग बन गया. इससे पहले लोगों को किसी भी तरह कि गिनती करने में काफी परेशानी होती थी.
भले ही आज शून्य का जनक आर्यभट्ट को माना जाता हो, पर इसके बाद भी शून्य के अविष्कार को लेकर भारत और अमेरिका में हमेशा से विवाद रहे हैं. एक तरफ भारत इसे अपनी खोज बताता है तो वहीं अमेरिका का कहना है कि उनके अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एक्जेल ने सबसे पहले शून्य का आविष्कार किया था. इतना ही नहीं यह भी कहा जाता है कि प्रकृत में रचित लोक विभाग नामक ग्रंथ में शून्य का उल्लेख सबसे पहले देखा गया था.
भारत से होते हुए शून्य का सफर विदेशों तक बेहद भी रोचक रहा. यह सफर इस्लामिक देशों के रास्ते होते हुए पश्चिम देशों तक जा पहुंचा था और यहीं से धीरे-धीरे पूरी दुनिया में शून्य का इस्तेमाल होने लगा और इसी शून्य ने देश में क्रांति ला दी, जिसने गिनती को बेहद ही आसान बना दिया.