1 नवंबर 1984 का दिन भारत के इतिहास का वह दिन माना जाता है जब हजारों बेगुनाह सिखों को मौत के घाट उतारा गया था. 1984 का सिख दंगा इंदिरा गांधी की मौत के बाद शुरू हुआ. आपको बता दें कि इंदिरा गांधी को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतारने वाला कोई और नहीं बल्कि उन्हीं के दो अंगरक्षक थे जो सिख थे, जब इस बात की जानकारी लोगों के बीच फैली तो देश में खून की होली खेलनी शुरू हो गई और उसके बाद ऐसा दंगा हुआ, जिसमें हजारों हजार लोगों की मौत हुई.
दिल्ली से लेकर कानपुर तक सिखों पर जमकर हमला किया गया. महिलाओं के साथ रेप की गई एवं उनके घरों को आग लगा दिया गया और इन लोगों ने खालिस्तान नाम के एक अलग देश की मांग शुरू कर दी, जिसमें केवल सिख और सरदार कौम के लोग रह सके, जब इस फैसले का सरकार ने विरोध किया तो इसी को लेकर ऑपरेशन ब्लूस्टार चला गया था.
इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनने के बाद दिल्ली की सड़कों पर भीड़ देखने लायक थी, जिन्होंने “खून के बदले खून” का नारा लगाना भी शुरू कर दिया था. इतना ही नहीं नारा लगाने वाले लोगों ने वहां आसपास की दुकानों, घरों और गुरुद्वारों में आग लगा दी और काफी संख्या में क्षति पहुंचाई और जो सीख पाकिस्तान से आकर यहां पर बसे थे उनकी हत्या कर दी गई और महिलाओं के साथ रेप किया गया.यह वो दृश्य था जब पुरुषों और जवान लड़कों को तलवारों से काटा जा रहा था और कुछ लोगों को तो सरेआम सड़कों पर जिंदा जला दिया गया
सिख दंगे में 5000 लोगों की मौत हो गई और कई लोगों के आशियाने उजड़ गए तो बस, ट्रेन और कारखाना में घुसकर पुरुष और युवकों पर जमकर हमला किया गया और उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई. उस वक्त किसी को जिंदा जला देना या गाड़ियों से उसे बाहर फेंक देना बहुत आम बन चुका था. कई लोगों का परिवार आज भी उनके पास लौटके नहीं आया. इस दंगे में केवल दिल्ली में दो हजार से ज्यादा लोगों को मारा गया था.
इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब पूरे देश में दंगा फसाद शुरू हो गया था तो उस वक्त उनके बेटे राजीव गांधी ने हिंसा का जवाब देते हुए कहा था कि जब कोई मजबूत पेड़ गिरता है तब उसके आसपास की धरती जरूर हिलती है. उनका यह बयान भी उस वक्त काफी सुर्खियों में रहा था.
हालांकि आपको बता दे कि सिख दंगा का मामला जब कोर्ट में पहुंचा तो इसके एक दोषी को मौत की सजा सुनाई जा चुकी और दूसरे को उम्र कैद की सजा मिली.