किस्सा- कहानी
कौन थें वीपी सिंह, कैसा रहा उनका प्रधानमंत्री पद का कार्यकाल, क्या थे उनके द्वारा विशेष काम
25 जून 1931 को इलाहाबाद के जमींदार परिवार मे जन्म लेने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह जनमोर्चा पार्टी से जुड़े थे. विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राजनीतिज्ञ थे जो साल 1989 से 1990 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. उन्होंने जनता दल और जनमोर्चा की स्थापना की थी. उनकी शिक्षा सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में हुई थी. पढ़ाई के समय ही उन्होंने राजनीति में रुचि लेना शुरू कर दिया था. उन्होंने अपने छात्र काल के दौरान बहुत से आंदोलन में हिस्सा लिया जहां धीरे-धीरे सत्ता के प्रति उनका प्रेम बढ़ता गया. जब साल 1969 में वह उत्तर प्रदेश के विधानसभा की सदस्य बनाए गए तो उस वक्त वह कांग्रेस के नेता थे जो इंदिरा गांधी की सरकार में वह केंद्रीय वाणिज्य मंत्री भी बने. जब इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में वापस आई तो उन्होंने बी पी सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया.
इंदिरा गांधी के बाद जब साल 1984 में राजीव गांधी ने सत्ता संभाली तब उनके कार्यकाल में वीपी सिंह वित्त मंत्री रहे जिसके बाद उन्हें रक्षा मंत्री का पद भी संभालने का मौका मिला, पर राजीव गांधी की सरकार के वक्त बोफोर्स कांड से कांग्रेस की छवि पूरी तरह से बिगड़ चुकी थी जहां मतभेद के कारण वीपी सिंह को कैबिनेट से निष्कासित कर दिया गया और बाद में उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा दोनों से रिजाइन कर दिया जिसके बाद उन्होंने साल 1987 में जन मोर्चा पार्टी का गठन किया और कांग्रेस के विरुद्ध प्रचार करना शुरू किया. 11 अक्टूबर सन 1988 को जनमोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल ने मिलकर गठबंधन किया और इन सभी का नाम रखा गया जनता दल. यह सारी पार्टी के अध्यक्ष वीपी सिंह थे जिन्हें 2 दिसंबर 1989 को भारी बहुमत प्राप्त हुई और उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया.
एक प्रधानमंत्री के रूप में अगर देखा जाए तो विश्वनाथ प्रसाद प्रताप सिंह ने देश की राजनीति मे अविस्मरणीय बदलाव किए. कहा जाता है कि उन्होंने दलित व निचली जाति के लोगों को चुनावी राजनीति में आने का मौका दिया तथा निचली जाति की हालत में सुधार के लिए उन्होंने कठिन परिश्रम भी किया था. 27 नवंबर 2008 को किडनी की बीमारी से दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में वीपी सिंह का देहांत हो गया.