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नेपाल में हिंदू राष्ट्र वाले राजतंत्र से लोकतंत्र की स्थापना तक का सफ़र –

फोकट का ज्ञान

नेपाल में हिंदू राष्ट्र वाले राजतंत्र से लोकतंत्र की स्थापना तक का सफ़र –

शुरुआती दौर से ही नेपाल एक हिंदू राष्ट्र रहा है. नेपाल हमेशा से अपने राजतंत्र के लिए पूरे विश्व में विख्यात माना जाता है,जहां आज हम आपको बताएंगे कि नेपाल में किस प्रकार राजतंत्र से लोकतंत्र की स्थापना हुई.

साल 1951 में पहली बार नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हुई थी, जहां 1955 में महाराजा त्रिभुवन के निधन के बाद महेंद्र सत्ता में आए. वे हमेशा से चाहते थे कि देश में लोकतंत्र ना हो जहां उन्होंने 1959 में आम चुनाव में नेपाली कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत हासिल हुआ और बीपी कोइराला प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए.जहां राजा महेंद्र ने संसद को भंग कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को खत्म कर दिया.

नेपाल राष्ट्र की जनता हमेशा खुले और उत्तरदाई शासन की आवाज उठाती रही. राजा ने सेना के द्वारा शासन पर पूरा नियंत्रण कर रखा था. साल 1990 में एक सफल जन आंदोलन हुआ जहां राजा ने लोकतांत्रिक संविधान की मांग की. नेपाल में लोकतंत्र ज्यादा कामयाब नहीं रहा, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि माओवादियों का वहां पर प्रभाव था. साल 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और 2006 में लोकतंत्र के लिए आंदोलन शुरू हुआ और राजा ज्ञानेंद्र ने संसद बहाल किया. 2015 में नेपाल में नया संविधान लागू हुआ और केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री बनाया गया. माओवादी ने भी सशस्त्र संघर्ष की राह छोड़ दी. माओवादी और कुछ दल भारत- नेपाल संबंध में भारत सरकार की भूमिका को लेकर चिंतित थे.

साल 2006 में यहां देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए. फिलहाल नेपाल अपने इतिहास के एक अद्वितीय दौर से गुजर रहा है, क्योंकि वहां संविधान सभा के गठन की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं. नेपाल में कुछ लोग अब भी मानते हैं कि अलंकारिक अर्थों में राजा का पद कायम रखना जरूरी है ताकि नेपाल अपने अतीत से जुड़े रहे. वह नेपाल जो भारत के उत्तर दिशा में भारत एवं चीन के बीच स्थित है वहां पर सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकरूपता है. नेपाल की अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर है. 1948 में नेपाल में पहली बार संविधान बना और संविधान के अंतर्गत वास्तविक शासक राजा को चुना गया.

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