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संसद भवन में होगा यह बड़ा बदलाव,अब लोकसभा में होंगे 846 सदस्य

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संसद भवन में होगा यह बड़ा बदलाव,अब लोकसभा में होंगे 846 सदस्य


भारतीय संसद भवन की बैठक क्षमता 1350 करने का क्या है मकसद!

28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिस संसद भवन का उद्घाटन हुआ है वह अपने आप में ऐतिहासिक भवन है. संसद भवन के निर्माण का मकसद यह भी था कि पुराने सदन में बैठने की क्षमता सीमित थी,जिस कारण नए संसद भवन का निर्माण किया गया. अब यह खबर मीडिया में आम होने लगी है कि बहुत जल्द परिसीमन करके लोकसभा में सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाएगी।दरअसल साल 2026 में होने वाले परिसीमन के साथ लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़ सकती है. इस वक्त लोकसभा में कुल 846 सीटें होनी चाहिए. दरअसल साल 1971 में जब यह संख्या निर्धारित की गई थी तब करीब साढे़ दस लाख आबादी पर एक लोकसभा सीट थी. आज यह आंकड़ा बढ़कर 25 लाख से ज्यादा की आबादी पर एक लोकसभा सांसद का हो चुका है, जो नया संसद भवन तैयार हुआ है, उसके लोकसभा में अधिकतम 888 सांसदों के बैठने की क्षमता है.

सरकार ने कर जाहिर कर दिया है परिसीमन का इरादा..
लोकसभा और विधानसभा में सीटों संख्या में परिवर्तन पर रोक को वर्ष 2001 की जनगणना के बाद हटा दिया गया था, लेकिन एक संशोधन द्वारा इसे वर्ष 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया गया. साल 2019 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में 1000 सीटें करने की मांग की थी. नई संसद के उद्घाटन के बाद पीएम मोदी ने भी आने वाले समय में लोकसभा की सीटों के बढ़ाने के बारे में चर्चा की है, जिसके बाद अब यह स्पष्ट रूप से कहा जा रहा है कि यह संभव है. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह और बीजेपी राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने भी परिसीमन का जिक्र किया है. सबसे पुख्ता प्रमाण तो यह है की नए संसद भवन में सांसदों के कुल बैठने की संख्या 1350 कर दी गई है जो साफ इशारा कर रहा है की निकट भविष्य में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की संख्या बढ़ने वाली है. ऐसे में इसके बाद यह संभावना और भी बढ़ चुकी है कि साल 2026 में परिसीमन किया जा सकता है.

क्या होता है परिसीमन और क्या है इसका इतिहास :
परिसीमन एक विधाई निकाय वाले देश या प्रांत में भौगोलिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को स्थापित करने की कार्य प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. इसका साफ-साफ अर्थ देखा जाए तो परिसीमन का कार्य एक शक्तिशाली संस्था के हाथों में होती है, जिसे परिसीमन आयोग कहते हैं. भारत में 4 बार ऐसे परिसीमन आयोग का गठन हो चुका है. 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन कानून के तहत यह संपन्न हुआ है. भारत में इसके आदेश पर कोई भी अदालत सवाल नहीं उठा सकता है. इसके आदेश को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में पेश किया जाता है. साल 1950- 51 में पहली बार परिसीमन अभ्यास किया गया था. 1952 में कांग्रेस ने परिसीमन आयोग अधिनियम अपनाया था. इस आयोग के आदेश कानूनी रूप से बाध्यकारी है और इसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है. यहां तक कि संसद भी आयोग द्वारा जारी आदेश में बदलाव नहीं कर सकते हैं. आयोग में एक अध्यक्ष(सुप्रीम कोर्ट का जज या रिटायर्ड जज), मुख्य चुनाव आयुक्त या दो आयुक्तों में से किसी और राज्य के चुनाव आयुक्त से बना होता है जहां चुनाव हो रहा है.

बढ़ती जनसंख्या में परिसीमन की आवश्यकता
पिछले 50 वर्षों में भारत की आबादी काफी बढ़ चुकी है ऐसे में एक जनप्रतिनिधि के लिए अपने क्षेत्र की समस्याओं पर ध्यान देना मुश्किल हो रहा ऐसे में संविधान लोगों को हक देता है कि उनके संसदीय या विधान सभा क्षेत्र का परिसीमन किया जा सके.परिसीमन में जनसंख्या के आधार पर सीटों का बंटवारा होता है. परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के समान लघु अक्षरों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना है. इसलिए निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन समय- समय पर न केवल जनसंख्या वृद्धि बल्कि इसके वितरण में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिए किया जाता है.

भारत के नए संसद भवन में बैठक क्षमता बढ़ाने का क्या है मकसद!

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