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हर वर्ष 15 दिनों के लिए भगवान भी पड़ते हैं बीमार, जानिए इसका रहस्य

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हर वर्ष 15 दिनों के लिए भगवान भी पड़ते हैं बीमार, जानिए इसका रहस्य

इंसानों को तो बीमार होते सबने देखा है, पर भगवान के बारे में यह बात सुनकर आपको अजीब लग सकता है. हम बात कर रहे हैं भगवान जगन्नाथ की जो 15 दिनों तक बीमार पड़ जाते हैं और उनका इलाज किया जाता है. भगवान की इस तरह बीमार होने की बात शायद आपको अजीब लग सकती है पर इस बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी लोग इनकी आस्था को लेकर अपने मन में रखते हैं. हर साल 15 दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं, जिसे लेकर एक मान्यता है कि जेष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को गर्भगृह से बाहर लाया जाता है और उन्हें स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें बुखार आ जाता है, जिस कारण 15 दिनों तक वह अपने कक्ष में विश्राम मुद्रा में रहते हैं. इसलिए हम आपको भगवान जगन्नाथ से जुडी कई ऐसी बात बताएंगे जिसके बाद आप भी उनके दर्शन करने को बेताब हो जाएंगे.

भगवान जगन्नाथ और लोगों की जुड़ी उनसे आस्था
214 फुट ऊंचा जगन्नाथ मंदिर 20 फुट ऊंची दीवारों से घिरा है जिसे कलयुग का भगवान भी कहते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से लोगों के सारे पाप धुल जाते हैं और मांगी मुराद भी पूरी होती है. यही वजह है कि अपने जीवन में एक बार हर कोई जगन्नाथ मंदिर में माथा टेकने का सपना देखता है. उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर चार पवित्र धामों में से एक है जहां दर्शन करने के लिए लाखों भक्तों का तांता लगा रहता है.

जगन्नाथ पुरी मंदिर का परिचय, इतिहास,मंदिर की विशेषता
कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह मंदिर भले ही भगवान विष्णु और कृष्ण को समर्पित है पर इस मंदिर में भगवान कृष्ण के साथ-साथ उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम की मूर्ति स्थापित की गई है. भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में यह मंदिर स्थापित है. यह मंदिर अपने आप में ही बहुत बड़ा अलौकिक मंदिर कहा जाता है, जिसका मुख्य आकर्षण का केंद्र खुद भगवान जगन्नाथ का मंदिर, गोल्डन बीच के किनारे समुद्र की लहरें और पुरी के आसपास घूमने के लिए कई जगह है. भगवान जगन्नाथ के मंदिर में आप मोबाइल फोन या कैमरा लेकर नहीं जा सकते हैं.
भगवान जगन्नाथ का प्रसाद जो तैयार होता है उसमें हजारों लोग लगे होते हैं, जिसका भोग हर रोज लगाया जाता है. धर्म शास्त्रों में इसे जगरनाथ पुरी के अलावा शमशेर क्षेत्र और पुरुषोत्तम क्षेत्र भी कहा गया है, इसलिए इसे कलयुग का धाम कहा जाता है. शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों दिशाओं में स्थापित एक मठ पुरी में भी है, जो गोवर्धन पीठ के नाम से प्रसिद्ध है.भगवान श्री कृष्ण ने जब अपना शरीर त्यागा तो उनका अंतिम संस्कार किए जाने के बाद उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया पर उनका हृदय एक जिंदा इंसान की तरह धड़क रहा था जो आज भी जीवित है. भगवान श्री कृष्ण का ह्रदय जगन्नाथ मंदिर में काठ की मूर्ति के अंदर रखा गया है, जो आज भी सुरक्षित है. हर 12 साल में यहां की मूर्तियों को बदला जाता है, जिस वक्त ऐसा किया जाता है रात को पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है और मंदिर परिसर को चारों और सीआरपीएफ सेना की निगरानी में रखा जाता है. उस वक्त मंदिर में किसी भी अन्य व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं होती है, जहां पुजारी अपनी आंखों पर पट्टी लगाकर और हाथों में दस्ताने लगाकर मंदिर के अंदर स्थापित मूर्तियों को बदलते हैं.

हर वर्ष निकलती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा
भगवान कृष्ण को समर्पित जगरनाथ मंदिर जिसे हिंदू धर्म के अनुसार सबसे पवित्र चार धाम की उपाधि भी दी जाती है, जिसे बैकुंठ का धाम भी कहा जाता है. यहां पर किसी के लिए अपना पांव भी रखना बड़ा ही भाग्यशाली माना जाता है. यह भी मान्यता है कि अगर किसी मनुष्य ने अपने जीवन काल में जगन्नाथ पुरी की यात्रा नहीं की तो फिर उसका जीवन संपूर्ण नहीं कहलाता है. भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं. इस यात्रा के दौरान लकड़ी के बने विशाल रथ को कुछ श्रद्धालु अपने हाथों से खींचते हैं. हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से रथ यात्रा की शुरुआत होती है, जिसके 11 दिन इसका समापन होता है. अगर आपको भी मौका मिले तो जगन्नाथ पुरी का दर्शन अवश्य करें…जय जगन्नाथ।

प्रत्येक वर्ष भगवान जगन्नाथ के निकलने वाले रथ यात्रा की झांकी.

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