ओ तेरी..
1998 का कांडला तूफान जिसे कभी नहीं भूल पाएगा गुजरात
जेठ की गर्मी का मौसम था और हर दिन की तरह गुजरात के लोग अपने कामों में लगे हुए थे, पर दोपहर होते-होते पूरा मंजर बदलने लगा. आसमान साफ था और फिर अचानक पूरा काला हो गया और तेज हवाएं चलने लगी. समुद्र में उठ रही 25 फीट की लहरें तेजी से गुजरात के समुद्री तटों की ओर आने लगीं. और फिर हवा का बवंडर नाचता हुआ गुजरात के कांडला जिले से जा टकराया. फिर क्या था चारों ओर लाशें ही लाशें…इनमें बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा थी. शमशान में अचानक इतने सारे शव पहुंचे की हालत बद से बदतर हो गई. उस वक्त जहरीली गैस के रिसाव की अफवाह भी फैली थी जिस कारण मजदूर परिवार का पलायन शुरू हो गया और लगभग 15000 मजदूर पलायन कर गए थे.
1998 में गुजरात में आए कांडला तूफान का परिचय: हम बात कर रहे हैं भारत के सबसे डरावने तूफान कांडला की,जो 1998 में गुजरात के कांडला जिले में आया था।उस वक्त स्थिति कुछ ऐसी थी कि कांडला और गांधीधाम के बीच पुल पर बच्चे, महिलाओं और पुरुषों की लाश सुखे कपड़ों जैसी लटकी हुई थी. वह दृश्य इतना भयानक था कि किसी के देखते ही पैरों तले जमीन खिसक जाती. कांडला से जब अचानक तूफान टकराया तो लोग जान बचाने के लिए बंदरगाह में पड़ी कंटेनर के ऊपर चढ़ गए लेकिन तूफान इन कंटेनर को भी अपने साथ उड़ा कर ले गया. इस तरह वही पोर्ट पर ही सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. इस तूफान में छोटी-मोटी चीजों को तो छोड़ दें, विशालकाय जहाज से लेकर पोर्ट की महाकाय क्रेन भी तबाह हो गई थी. गुजरात में 1173 लोगों की मौत हुई थी और 1500 से अधिक लोग लापता हुए थे.
नुकसान के आंकड़े और इतने बड़े नुकसान की वजह: कांडला बंदरगाह को काफी नुकसान हुआ था, जिसे पूरी तरह से खाली करवाया गया था. हजारों की संख्या में ट्रक के पहिए पूरी तरह से ठप हो गए थे. लोगों को दूर शेल्टर होम में शिफ्ट कर दिया जा रहा था. तूफान इतना भयानक था कि अगले कुछ महीने तक लाशें मिलती रही। रेल की पटरी इस तूफान में उखड़ गए और कच्छ में 15000 बिजली के खंभे गिर गए थे. तीन महीनों तक पूरे कछ में ब्लैक आउट रहा था. पेट्रोल पंप के बर्बाद होने के कारण पेट्रोल डीजल की सप्लाई भी पूरी तरह से बंद हो चुकी थी. उस वक्त तेजी से बढ़ते जलस्तर ने लोगों के घरों, खेतों और नमक के मैदानों को अपनी जद में लेना शुरू कर दिया था. शवो को ट्रकों में भरकर अस्पताल भेजा जा रहा था. इस तूफान से पहले चेतावनी जारी की गई थी लेकिन सरकार सो रही थी. लोगों को यह पता ही नहीं था कि उनकी तरफ कितनी बड़ी मुसीबत आ रही है. जब तक लोग समझ पाते तब तक वह मौत के मुंह में जाने को तैयार हो चुके थे.
कांडला और बिपरजोय तूफान से बचने के लिए तैयारियों में अंतर
1998 और 2023 में काफी बदलाव आ चुके हैं। संसाधन से लेकर सामर्थ तक में भारत काफी विकसित हो चुका है। जहां कांडला को लेकर सरकार तैयार नहीं थी तो वही आज काफी दिनों से बिपरजॉय से बचाव की तैयारी चल रही है। 75000 लोगों को तूफान आने से पहले ही स्थानांतरित कराया जा चुका है। मौसम विभाग लोगों को पल-पल की जानकारी दे रहा है। एनडीआरएफ की टीम मुस्तैदी से स्थिति पर नजर बनाए हुई है। सरकार की सभी तंत्र मिनट मिनट का रिपोर्ट ले रहे हैं।