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इंदिरा गांधी को जान देकर चुकानी पड़ी इस फैसले की कीमत

किस्सा- कहानी

इंदिरा गांधी को जान देकर चुकानी पड़ी इस फैसले की कीमत

एक ऐसा मंजर जिससे उबर पाने में 10 साल से ज्यादा समय लग गए और इसकी कीमत हमारी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत के इतिहास में एक ऐसी घटना जिसे इंदिरा गांधी की मौत की पटकथा कही जाती है, जिसे कहीं ना कहीं इंदिरा गांधी ने खुद लिखा था. 3 दिन तक चली इस ऑपरेशन में लगभग 300 लोग मारे गए और कई सैनिक की जान भी गई. ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय इतिहास में एक ऐसी कहानी रही जिसने इतिहास की धारा ही बदल दी वरना किसी ने उम्मीद भी नहीं किया था की प्रधानमंत्री के अंगरक्षक ही उनकी हत्या कर देंगे पर यह केवल इंदिरा गांधी की हत्या तक सीमित नहीं रहा. इसके बाद में जो इस देश में हुआ वह हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया और इसके लिए लोगों को ना जाने कितनी कुर्बानियां देनी पड़ी.

स्वर्ण मंदिर को भिंडरावाले के चुंगल से आजाद कराने के लिए इंदिरा गांधी द्वारा लिया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार का बहादुर निर्णय

5 अक्टूबर 1983 को सिख चरमपंथियों ने कपूरथला के जालंधर जा रहे बस को रोक दिया और बस में सवार हिंदू यात्रियों को चुन- चुन कर मार डाला. इस घटना के बाद इंदिरा गांधी ने दरबारा सिंह की सरकार को हटा दिया और पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. सरकार के हटाने के बाद भी हालात नहीं बदले और पंजाब में हिंसा का दौर जारी रहा. 15 दिसंबर 1984 को भिंडरावाले ने अपने हथियारबंद साथियों के साथ फिर स्वर्ण मंदिर में अपना कब्जा जमा लिया. अकाल तख्त का मतलब है ऐसा सिहासन जो अनंत काल के लिए बना है. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास अपने हथियारबंद साथियों के साथ छिपे बैठे जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसकी छोटी सी टुकड़ी को काबू करने के लिए एक अभियान चलाया गया था जिसे ऑपरेशन ब्लू स्टार का नाम दिया गया. इस ऑपरेशन में मशीन गन, हल्की तोपे, रॉकेट और आखिरकार लड़ाकू विमान तक आजमाने पड़े थे, जिसमें सिखों का सर्वोच्च स्थान अकाल तख्त तबाह हो गया था. स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों का सफाया करने का आदेश इंदिरा गांधी ने दिया था, जिसमें 83 सेना कर्मी और 492 नागरिक मारे गए थे. उस दौर में पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें शशक्त हो रही थी जिन्हें पाकिस्तान से पूरा समर्थन मिल रहा था, जिसके चलते पंजाब के हालात बहुत खराब थे. 5 जून 1984 की रात 9:30 बजे हरमंदिर साहिब के अंदर भारतीय सेना की एंट्री हुई और यह ऑपरेशन सुबह तक चला. सुबह 6:00 बजे तक यह ऑपरेशन मुकम्मल हो चुका था, जहां भिंडरावाले और उसके कमांडर साबेग सिंह को सेना ने ढेर कर दिया था.

ऑपरेशन ब्लू स्टार के सफलता के बाद इंदिरा गांधी की हत्या के साजिश की पूरी कहानी
ऑपरेशन ब्लू स्टार की सफलता के बाद सिख समुदाय के सबसे पूजनीय स्थानों में से एक स्वर्ण मंदिर पर सैन्य कार्रवाई में दुनिया भर के सिख समुदाय के लोगों के बीच तनाव का माहौल पैदा कर दिया था. बाद में इसी ऑपरेशन ब्लूस्टार को शुरू करने का आदेश देने वाली देश की ताकतवर महिला इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को उनके दो सिक्ख अंगरक्षकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसके बाद इस हत्या ने सिख दंगों को हवा दे दी जिसमें हजारों लोग भी मारे गए.
31 अक्टूबर 1984 की तारीख जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने पूरे कार्यक्रम के लिए तैयार हो चुकी थी. सुबह 9:10 पर इंदिरा गांधी पीटर को इंटरव्यू देने के लिए बाहर आई. इंदिरा गांधी ने आगे बढ़कर सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह को नमस्ते कहा. इतने में ही उन्होंने सरकारी रिवाल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर 3 गोलियां दाग दी. सतवंत ने भी गोलियां दागनी शुरू कर दी और 1 मिनट से कम वक्त में स्टेन गन की 25 गोलियों की मैगज़ीन खाली हो गई. खून से लथपथ इंदिरा गांधी को एम्स ले जाया गया. उन्हें 80 बोतल ओ नेगेटिव खून चढ़ाया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. तब तक हमने देश की आयरन लेडी को खो दिया था.

खालिस्तानी आतंकवादी भिंडरावाले के आतंक को कुचलने के लिए चलाया गया था ऑपरेशन ब्लू स्टार.

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