अपनी बहादुरी के लिए पहचाने जाने वाले गोरखा रेजीमेंट ना हीं मौत से डरते हैं, ना हीं किसी परिस्थिति में पीछे हटते हैं. इनके बहादुरी के तो ऐसे किस्से हैं कि सुनकर हर कोई दंग रह जाएगा. यह एक ऐसा रेजिमेंट माना जाता है जिसके आगे कई बड़ी-बड़ी सेना भी थरथर कांपने लगती है. तभी तो एशिया महादेश में शासन करने आए अंग्रेजों ने भी गोरखा लड़ाकों का लोहा माना था. गोरखा रेजीमेंट के जवानों की पहचान तिरछी गोरखा हैट और उनकी खुकरी है. यह एक तरह का चाकू होता है जो आगे की तरफ से मुड़ा हुआ होता है, जिनके सामने दुश्मनों को हर हाल में झुकना होता है.
गोरखा रेजीमेंट का परिचय 42 हफ्ते की कठिन ट्रेनिंग के बाद फिजिकली और मेंटली तौर पर मजबूत होने के बाद ही किसी व्यक्ति को गोरखा रेजीमेंट का हिस्सा माना जाता है. दुनिया के सिर्फ तीन देश नेपाल, ब्रिटेन और भारत के पास ही गोरखा रेजीमेंट है. गोरखा किसी एक जाति के योद्धा नहीं है, बल्कि पहाड़ों में रहने वाली सुनवार, गुरुंग, राय, मागर और लिंबू जातियों में से है. कहा जाता है कि गोरखा रेजिमेंट की स्थापना अंग्रेजों ने की है लेकिन गोरखा को अपनी सेना में शामिल करने का चलन उससे पहले ही शुरू हो चुका था. ईस्ट इंडिया कंपनी से पहले महाराजा रणजीत सिंह ने गोरखा की एक बटालियन बनाई जो 1809 से 1814 तक सेना का अभिन्न हिस्सा था. आजादी के बाद 1947 में भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ जिसके बाद गोरखा रेजीमेंट भारतीय सेना का हिस्सा बना दी गई. तब से गोरखा रेजीमेंट भारतीय सेना को गौरवान्वित कर रही है. दरअसल 1815 में जब ईस्ट इंडिया का युद्ध नेपाल राजशाही से हुआ था तब उसमें नेपाल को हार मिली थी लेकिन नेपाल की गोरखा सैनिक बहादुरी से लड़े थे. अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान गोरखा की बहादुरी से सर डेविड ऑक्टरलोनी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गोरखाओ के लिए अलग रेजिमेंट ही बनाने का फैसला कर लिया था. 24 अप्रैल 1815 को गोरखा रेजीमेंट की शुरुआत हुई थी जिसे बने 200 से ज्यादा साल हो चुके हैं. भारतीय सेना में 7 गोरखा रेजीमेंट है और 4 गोरखा रेजीमेंट सेंटर जहां गोरखा जवानों की ट्रेनिंग होती है. अभी भारतीय सेना में गोरखा रेजीमेंट में 60% गोरखा नेपाल डोमिसाइल के होते हैं और 40% इंडियन डोमिसाइल के गोरखा होते हैं, जिसमें कुमाऊंनी गढ़वाली के युवकों को सबसे ज्यादा लिया जाता है.
गोरखा रेजीमेंट के बहादुरी का उदाहरण 1. पहले विश्व युद्ध में 200000 गोरखा सैनिकों ने हिस्सा लिया था, जिसमें से लगभग 20000 ने रणभूमि में वीरगति प्राप्त की.
2. दूसरे विश्वयुद्ध में लगभग ढाई लाख गोरखा जवान उत्तर अफ्रीका, इटली, ग्रीस व बर्मा भी भेजे गए थे. विश्व में 32000 से अधिक गोरखा ने शहादत दी थी. भारत के लिए भी गोरखा जवानों ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हुई सभी लड़ाईयों में शत्रु के सामने अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया था.