किस्सा- कहानी
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत एक रहस्य बन कर रह गई, यहां हुई चूक
पंडित नेहरू के बाद लगभग डेढ़ साल तक भारत के प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी जो कि एक साफ-सुथरी छवि के व्यक्ति थे उनकी मौत से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया. कोई कहता है उन्हें हार्ट अटैक आया था तो कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें जहर देकर मारा गया था, पर सच्चाई क्या है यह आज भी एक पहेली है. उस रात यह भी कहा जाता है कि उनके रसोईया ने खाना नहीं बनाई था और उनके जगह किसी और ने खाना बनाया था. इन सब बातों से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया कि आखिर शास्त्री जिस कमरे में ठहरे हुए थे आमतौर पर वैसे कमरे में घंटी लगी होती है, ताकि किसी इंसान को कोई जरूरत हो तो वह घंटी बजा कर किसी को बुला सके. मगर उनके कमरे में ऐसी कोई घंटी नहीं थी, यह सारी चूक एक अलग तरफ ही इशारा करती है.
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय
उत्तर प्रदेश के मुगल क्रांति में 2 अक्टूबर 1960 को लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था. उनके पिता मुंशी प्रसाद शास्त्री प्राथमिक शाला के शिक्षक थे और माँ गृहणी थी. उनकी प्रारंभिक शिक्षा संगठन में हुई और आगे की पढ़ाई काशी विद्यापीठ में हुई. संस्कृत भाषा से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और यही पर ‘शास्त्री’ की डिग्री मिली. इसके बाद उन्होंने साल 1928 में विवाह कर लिया. 1966 में देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से शास्त्री जी को सम्मानित किया गया था. मरो नहीं मारो का नारा भी शास्त्री जी ने हीं दिया था जिसने पूरे देश में स्वतंत्रता की ज्वाला को तेज कर दिया था.
शास्त्री जी के ताशकंद यात्रा की पूरी कहानी और उनकी मर्डर मिस्ट्री
यह पूरी कहानी कश्मीर पर कब्जा करने को लेकर शुरू होती है. साल 1964 में लाल बहादुर शास्त्री अयूब खान से मुलाकात करते हैं. इस मुलाकात में आयुब खान को लगता है कि वह जबरदस्ती कश्मीर को हासिल कर लेंगे और यही वह गलती कर देते है. 1965 में उन्होंने कश्मीर को हथियाने के लिए घुसपैठियों को भेज दिया, जिसके बाद वह धोखा खा गए. नतीजा यह हुआ कि भारतीय सेना लाहौर कूच कर गई और सैकड़ों एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया. 1965 की जंग के बाद भारत और पाकिस्तान की कई दफा बातचीत के बाद एक दिन और जगह चुना गया, ताशकंद समझौते के लिए… ताशकंद में 10 जनवरी 1966 का दिन तय हुआ जिसमें दोनों देशों को अपनी- अपनी सेनाएं बॉर्डर से पीछे हटानी थी और समझौते पर साइन करने के बाद 11 जनवरी 1966 को करीब 1:30 बजे के आसपास की रात रहस्यमय परिस्थिति में उनकी मौत हो गई. ऐसा कहा जाता है कि उनके ऊपर दबाव देकर हस्ताक्षर कराए गए थे। मगर यह भी कहा जाता है कि उन्हें जहर देकर मारा गया था जो कि एक सोची समझी साजिश थी, जो आज भी ताशकंद के आबोहवा में एक दबा हुआ राज है. कुलदीप नैयर ने अपनी बुक ‘बियोंड द लाइन’ में इस बात का जिक्र किया है कि अगर उनकी मृत्यु हार्ट अटैक से हुई होती तो उनके शरीर पर नीला निशान और कई जगह पर चकत्ते कहा से आए. उस रात जब वह सो रहे थे तो अचानक एक रूसी महिला ने दरवाजा खटखटाया और बताया कि शास्त्री जी नहीं रहे. उनका पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया।1970 में शास्त्री जी की मौत के बाद जो समिति गठित की गई थी उस समिति की सारी पड़ताल भी सामने नहीं लाई गई, ना ही मौत के कारणों के बारे में बताया गया. उनकी मृत्यु आज भी पूरे देश के लिए एक रहस्य है।