इतिहास में हमने कई दफा यह अध्ययन किया है कि मुगल काल के शासकों ने भारत में कई हिंदू देवी देवताओं के मंदिर और तीर्थ स्थलों को नष्ट किया था. उनमें से एक नासिक का त्रंबकेश्वर मंदिर भी शामिल था. यह साल 1690 की घटना है, जब मुगल शासक औरंगजेब की सेना ने नासिक में स्थित इस मंदिर के अंदर के शिवलिंग को तोड़ दिया था और मंदिर को कई तरह से क्षति पहुंचाई थी और इसके ऊपर मस्जिद का गुंबद बना दिया गया था. जब 1751 में मराठों का नासिक पर कब्जा हुआ तब दोबारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया.
नासिक स्थित त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का परिचय हिंदुओं के लिए सबसे पूज्य माने जाने वाले भगवान शिव का यह मंदिर नासिक शहर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर गौतमी नदी के किनारे बसा हुआ है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान 10वां है. यहां पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश सिर्फ एक ही रूप में विराजित है. श्रीमंत नानासाहेब पेशवा ने 1755 से 17 86 के बीच इस मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें 16 लाख रुपए खर्च हुए थे. यह गौतम ऋषि की तपोभूमि भी मानी जाती है. पूरा मंदिर काले पत्थरों से निर्मित है और चौकोर मंडप और बड़े दरवाजे इसकी शान माने जाते हैं. मंदिर के अंदर जाते ही आपको एक स्वर्ण कलश नजर आएगा और शिवलिंग के पास हीरो और अन्य कीमती रत्न के मुकुट बने हुए हैं, जो इसके पौराणिक होने का प्रमाण है. इसके अलावा त्रंबकेश्वर मंदिर के पास आपको तीन पर्वत नजर आएंगे जो ब्रम्हगिरी, नीलगिरी और गंगाद्वार के नाम से जाना जाता है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. कई इतिहासकारों का यह भी मानना है कि यहां स्थित शिवलिंग जो है उसे किसी तरह से स्थापित नहीं किया गया था बल्कि वह गौतम ऋषि की तपस्या से प्रकट हुआ था. यह मंदिर 7 दिन भक्तों के लिए खुला रहता है. सावन महीने में ये कहा जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर के दर्शन करते है तो भगवान शिव उसके सभी कष्ट दूर करते हैं. इसके अलावा जिन लोगों की जन्म कुंडली में कालसर्प दोष और पितृ दोष पाया जाता है, वह यहां आकर पूजा करके अपने इस दोष को समाप्त कर सकते हैं.
औरंगजेब ने क्यों तबाह किया त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग औरंगजेब के शासनकाल में तो हिंदू देवी देवताओं के मंदिर को तोड़ने और उसे क्षती पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो चुका था, पर इससे पहले औरंगजेब ने जब छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या की थी उसके बाद उन्होंने हिंदुओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. मराठा साम्राज्य के तहत जो भी धार्मिक स्थल आते थे उसे नष्ट करने का आदेश दे दिया करता था. जब भारत में मुगल शासक का राज था, उस वक्त औरंगजेब ने त्रंबकेश्वर मंदिर पर हमला करके इसे पूरी तरह से नुकसान पहुंचाने का काम किया था. औरंगजेब के हमले के बाद इस मंदिर के जीर्णोद्धार का श्रेय पेशवा को दिया जाता है. 1751 में जब मराठों का फिर से नासिक पर शासन हुआ तब जाकर इस मंदिर का पुनः निर्माण शुरू हुआ. त्रंबकेश्वर, नासिक से गंगा नदी सहित गौतमी या गोदावरी का उद्गम स्थल माना जाता है. यहां पर त्रिदेव का वास है जिस कारण इसे त्रंबकेश्वर कहा जाता है.