किस्सा- कहानी
जब 93 हजार पाकिस्तानी फौज को करना पड़ा था आत्मसमर्पण, दुनिया ने देखा था भारतीय सेना का शौर्य
भारत ने इतिहास में अपने पड़ोसी देश के साथ किस तरह अच्छे रिश्ते साझा किए हैं, आज ऐसे हजारों प्रमाण मौजूद है जो इस बात का गवाह है. जब भी भारत के पड़ोसी मुल्क को किसी तरह की आवश्यकता हुई भारत ने दिल खोलकर अपना कदम आगे बढ़ाया और जब- जब किसी ने अपनी सीमा लांघी तब- तब भारत ने उसका मुंहतोड़ जवाब दिया है. साल 1971 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था जहां लगभग 13 दिनों तक पाकिस्तान के साथ भारतीय सैनिकों ने युद्ध किया जिनके सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए और पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. कहा जाता है कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था जिसके बाद दुनिया के मानचित्र पर एक अलग ही देश का उदय हुआ.
पाकिस्तान से बांग्लादेश के आजाद होने की कहानी
यह सिलसिला 1971 को शुरू होता है जब पाकिस्तानियों द्वारा बांग्लादेश के बंगालियों पर अत्याचार और क्रूरता की सारी सीमाएं पार हो गई थी. पाकिस्तान की हिंसा को लेकर बांग्लादेश के लोगों में काफी आक्रोश था. लोगों पर सरेआम गोलियां चलाई जा रही थी. लाखों लोगों को पाकिस्तानी सेनाओं ने मार डाला था और स्त्रियों की स्थिति बद से बदतर हो गई थी. इसके अलावा कहा जाता है कि पाकिस्तान के द्वारा पूर्वी पाकिस्तान जो कि वर्तमान बांग्लादेश है उस पर अपनी उर्दू भाषा और अपनी संस्कृति थोपी जा रही थी. इस पर पूर्वी पाकिस्तान में भयानक असंतोष का वातावरण उत्पन्न हो गया था, पूर्वी बंगाल से आने वाले नेताओं ने यह मांग रखी कि बंगाली को अंग्रेजी और उर्दू के साथ राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए जिस के प्रस्ताव को मोहम्मद अली जिन्ना ने ठुकरा दिया. बाद में लोगों का विरोध इतना बढ़ गया कि उन्होंने खुद को पाकिस्तान से आजाद कराने की ठान ली. 26 मार्च 1971 को *बांग्लादेश मुक्ति युद्ध* के परिणाम स्वरूप बांग्लादेश को एक राज्य के रूप में अलग कर दिया गया. बांग्लादेश और पाकिस्तान के युद्ध में बांग्लादेश ने आजादी हासिल की जिसमें भारत ने पूरा समर्थन किया, जिसके परिणाम स्वरूप शेख मुजीबुर्रहमान और भारत के सहयोग से 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की आजादी की घोषणा हुई.
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय सेना द्वारा चलाया गया 13 दिनों का ऑपरेशन
पाकिस्तान में जिस तरह से बांग्लादेशी लोगों पर अत्याचार होता था, उसके बाद यह लोग भारत में शरण लेने को विवश हो गए. देखते ही देखते भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या लाखों तक पहुंच गई. उस वक्त की प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी ने भी भारतीय संसद में भाषण देते हुए मदद की इच्छा जाहिर की थी. इंदिरा गांधी ने अमेरिका समेत कई देशों का दौरा कर पाकिस्तान से बांग्लादेश में किए जा रहे जुल्म और नरसंहार के बारे में पूरी दुनिया को बताया. 3 दिसंबर को भारतीय वायु सेना के ठिकानों पर पाकिस्तानी सेना ने हमला बोल दिया था. तब भारत को सीधे तौर पर इस लड़ाई में शामिल होने का अच्छा बहाना मिल गया. इसमें सबसे अहम कड़ी थी कि पाकिस्तान, चीन, अमेरिका और कई इस्लामिक देश बांग्लादेश के गठन के पूरे खिलाफ थे. इसके बावजूद भी भारत ने बांग्लादेश का समर्थन किया. भारत और पाकिस्तान के बीच 13 दिनों का युद्ध चला जिसके बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के 93 हज़ार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया जिसके बाद बांग्लादेश का उदय हुआ. इसका सबसे बड़ा श्रेय भारतीय सैनिकों को जाता है जिन्होंने अपनी साहस से 13 दिनों तक पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और पूरी दुनिया का नक्शा बदल कर रख दिया.