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वकीलों को कहा जाता था बैरिस्टर, अंग्रेजी शासनकाल में इस वजह से थी अहमियत

किस्सा- कहानी

वकीलों को कहा जाता था बैरिस्टर, अंग्रेजी शासनकाल में इस वजह से थी अहमियत

अदालत के आसपास या अदालत के अंदर जब भी हम किसी को कालाकोट और गले में टाई जैसा बैंड लगाए देखते हैं तो हम उसे आमतौर पर वकील, एडवोकेट कहते हैं. भले ही हम आम बोलचाल की भाषा मे लॉयर, एडवोकेट और बैरिस्टर को एक जैसा समझ लेते हैं पर इन तीनों शब्दों के बीच बहुत बड़ा अंतर माना जाता है. आइए जानते हैं बैरिस्टर क्या होते हैं और अंग्रेजी शासनकाल में क्या इनकी अहमियत थी.

महात्मा गांधी की कहानियों को जिसने भी सुना है वह सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी बैरिस्टर थे. बैरिस्टर एडवोकेट से इसलिए अलग होता है, क्योंकि बैरिस्टर वह होते हैं जिन्होंने बैरिस्टर की डिग्री भारत से हासिल ना करके इंग्लैंड से प्राप्त की है. यही वह वजह है जिसकी वजह से महात्मा गांधी को बैरिस्टर गांधी भी कहा जाता था. देखा जाए तो बैरिस्टर एक तरह वकील का ही प्रकार होता है, जो आम कानून न्यायालय में प्रैक्टिस करता है. उसे इंग्लैंड का संविधान कंठस्थ याद होता है.

राज्य की बार काउंसिल में अपना नाम दर्ज करवा देने पर बैरिस्टर को एडवोकेट का दर्जा प्राप्त हो जाता है. बैरिस्टर ज्यादातर कोर्ट रूम के विशेषज्ञ माने जाते हैं. वह हमेशा बेहतर मामलों में दखलंदाजी करते हैं.कानूनी मसौदा तैयार करना, कानून का इतिहास, परिकल्पना और कानूनी विशेषज्ञों पर शोध करना और किसी तरह की राय देना बैरिस्टर का काम होता है. बैरिस्टर के पास ग्राहकों तक सीधी पहुंच अधिक होती है. मुख्य रूप से बैरिस्टर को न्यायाधीश के रूप में भी नियुक्त किया जाता है.

प्रत्येक राज्य की अपनी स्वयं की एक बार काउंसिल होती है, जिसका काम होता है उस राज्य के प्रादेशिक सीमा के अंदर मुख्य रूप से अभ्यास करने के लिए तैयार बैरिस्टरओं का नामांकन करना और उन्हें अपने क्षेत्र के अंदर बार काउंसिल ऑफ इंडिया के कार्यों का निष्पादन करना.

ब्रिटिश भारत में कोर्ट रूम की एक तस्वीर जहां महात्मा गांधी, पंडित मदन मोहन मालवीय और सर्वपल्ली राधाकृष्णन बैठे हुए हैं.

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