धर्म- कर्म

रावण की इस गलती की वजह से वैद्यनाथ धाम में बस गए महादेव

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हिंदू धर्म में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का बड़ा ही महत्व है, जिसके मात्र दर्शन से ही लोगों के सभी पाप मिट जाते हैं और उनकी जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है. आज हम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहे हैं कि आखिर किस तरह रावण की एक गलती की वजह से भगवान शिव हमेशा के लिए देवघर में बस गए और आज यह लोगों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है. भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बेहद ही निराली है. भगवान शिव की इस मंदिर में पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व बताया जाता है, जहां हर साल लोग यहां पर दर्शन कर भगवान शिव से मनवांछित फल की प्रार्थना करते हैं.

वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग का परिचय
वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। यहां की शिवलिंग को कामना लिंग कहा जाता है. जहां-जहां महादेव साक्षात रूप से प्रकट हुए वहां पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हो गई. यहां श्रद्धालु भोलेनाथ से मन्नत पूरी होने पर गठजोड़ पूजा का वादा कर जाते हैं, जिसके बाद वह दोबारा आकर इस अनुष्ठान को संपन्न करते हैं. इसमें भगवान शिव के मंदिर के गुंबद और मंदिर परिसर में ही स्थापित माता पार्वती के मंदिर के गुंबद के बीच पवित्र लाल धागा बांधा जाता है. इस मंदिर का पानी औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है जिसमें कई बीमारियों को ठीक करने की क्षमता है.

रावन की वह गलती जिसकी वजह से वह शिवलिंग को लंका नहीं ले जा पाया
पुराणों में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी लंकापति रावण से मिलती है. कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने हिमालय पर तप किया और एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर वह चढ़ा रहा था. 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10 वां सिर काटने वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा. बदले में रावण ने इस लिंग को लंका ले जाने का वरदान मांग लिया. रावण सोने की लंका के अलावा तीनों लोको में शासन करने की शक्ति के साथ कई देवता, यक्ष और गंधर्व को कैद करके भी लंका में रखा हुआ था. महादेव ने उनकी शर्त मान ली लेकिन अपनी एक शर्त भी रखी और कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कहीं भी रखा तो फिर मैं वही रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा. रावण ने भगवान शिव की इस शर्त को मान लिया और फिर रावण एक गलती कर बैठा. रास्ते में रावण ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया और रावन को यह बिल्कुल भी आभास नहीं था कि उस ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु थे. यही रावण की सबसे बड़ी गलती साबित हुई. इसी वजह से यह तीर्थ स्थान वैद्यनाथ धाम और रावणेरम धाम दोनों के नाम से विख्यात है. चालाकी से भगवान विष्णु ने रावण के दिए गए शिवलिंग को जमीन पर रखकर उसे स्थापित कर दिया. जब तक रावण लौट पाता तब तक भगवान शिव वहां पर विराजमान हो चुके थे और उसके लाख कोशिश के बावजूद भी वह शिवलिंग नहीं उठा पाया. बाद में वह क्रोधित होकर शिवलिंग पर अपना अंगूठा गड़ाकर चला गया. इसके बाद से ही महादेव कामना लिंग के रूप में बैजनाथ धाम में विराजमान है.

सावन मास में बैद्यनाथ धाम दर्शन के लिए लगता है भक्तों का मेला.

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