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टाटा कंपनी को शीर्ष पर पहुंचाने के लिए रतन टाटा ने दिया है बड़ा बलिदान, इंडियन फर्स्ट है इनका मूल मंत्र

किस्सा- कहानी

टाटा कंपनी को शीर्ष पर पहुंचाने के लिए रतन टाटा ने दिया है बड़ा बलिदान, इंडियन फर्स्ट है इनका मूल मंत्र

आज के लोग भले ही जीवन में कुछ भी काम करें पर वह कभी भी अपने सुख सुविधाओं का त्याग नहीं करते, यह शायद आपने कभी नहीं सुना होगा कि किसी ने अपनी कंपनी को बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए अपनी निजी जिंदगी की खुशियों को कुर्बान कर दिया. हम बात कर रहे हैं रतन टाटा की जो आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है. आज वह एक ऐसी शख्सियत बन चुके है जिनका कोई सानी नहीं है. जमशेदजी टाटा के बाद उन्होंने टाटा कंपनी को आसमान तक पहुंचा दिया, जिसके सामने आज बड़ी-बड़ी कंपनियों का नाम भी छोटा नजर आता है, पर उनके लिए यह सफर आसान नहीं था. उन्होंने इसे बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए अपनी खुशियों को कुर्बान किया. शायद उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है. इसके बाद उन्होंने इंडियन फर्स्ट का मूल मंत्र दिया और उनके लिए उनका काम ही उनकी पूजा बन गया.

टाटा समूह के मालिक रतन टाटा का जीवन परिचय
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को सूरत में हुआ.  उनकी स्कूली शिक्षा मुंबई के कैंपियन स्कूल में हुई और फिर उसके बाद वह कैथेड्रल और जॉन कान्वेंट स्कूल में चले गए. साल 1962 में उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग में अपना बीएस पूरा किया। भारत आने से पहले उन्होंने कैलिफोर्निया, जॉन्स और लॉस एंजिल्स जैसी जगह पर काम करके काफी कुछ सीख लिया था, जिसके बाद 1961 में उन्होंने टाटा ग्रुप के साथ अपने सफर की शुरुआत की. 1981 में टाटा इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष बन गए. पिछले 50 सालों से रतन टाटा, टाटा ग्रुप से जुड़े हैं और 21 सालों तक वह इसके अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान टाटा ग्रुप का राजस्व कई गुना तक बढ़ाया जो 2011 के बाद कुल 100 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा हो गया था और फिर यह दिन प्रतिदिन उनके रहते बढ़ता चला गया और कंपनी कहां से कहां पहुंच गई. आज टाटा कंपनी टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा कंसलटेंसी, टाटा केमिकल्स, होटल्स इंडियंस और टाटा टेलीसर्विसेज के रूप में अपनी सेवाएं लोगों को दे रही है.

आज के जीवन में अकेले रहना किसी के लिए भी दुख से कम नहीं है. जब आपको जिंदगी के हर कदम पर यह एहसास होता है कि आपके पास अपनी दुख और खुशियों को बांटने वाला कोई नहीं है. रतन टाटा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. चार बार जिंदगी में उन्हे प्यार हुआ,पर वह आज तक कवांरे रहे. जब वह अमेरिका की लॉस एंजेलिस में थे, उस वक्त वह एक लड़की के साथ प्यार में पड़ गए थे पर उस वक्त स्थिति ऐसी हुई थी उनकी दादी की तबीयत खराब हो गई थी जिस कारण उन्हें भारत आना पड़ा पर वह लड़की उनके साथ भारत नहीं आ पाई. उसके बाद 1962 में भारत- चीन की लड़ाई शुरू हो गई जिस कारण उस लड़की के माता-पिता ने उसे भारत आने से मना कर दिया और उनकी प्रेम कहानी अधूरी रह गई. यही वजह है कि वह आज भी एक बैचलर बिजनेसमैन के तौर पर अपनी जिंदगी बिताते हैं.

टाटा कंपनी की वो 5 बातें जो इस कंपनी को भारतीय का चहेता कंपनी बनाती है
1. टाटा कंपनी भारत की चहेता तब बनी, जब उसने पहली बार भारत में ब्रांडेड नमक उपलब्ध कराया था और उसके बाद भारत में ब्रांडेड आभूषण और भारत में खुदरा स्टील बेचने वाली भी पहली कंपनी बनी थी.

2. यह कंपनी हमेशा अपने वित्तीय लाभ से पहले सामाजिक और अपने कर्मचारियों के कल्याण के बारे में सोचती है.

3. इस कंपनी के पास कई ऐसे दूरदर्शी और महान लोग हैं, जो हमेशा अपने बिजनेस के बारे में सोचते थे ना कि अपने लाभ के बारे में.

4. टाटा कंपनी के आने के बाद भारत में एक अलग तरह की क्रांति आई जिसके बाद बड़े से बड़े व्यावसायी इस क्षेत्र में अपना अपना जोर दिखाने के लिए कूद गया.

5. इस कंपनी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह अपने कर्मचारियों के हित के सभी मुद्दों का हल करते हैं और हमेशा उनसे वार्ता करके उनकी परेशानियों को दूर करने की कोशिश करते हैं, जिस वजह से लगभग 9 दशक से कंपनी में कोई हड़ताल नहीं हुई है.

रतन टाटा के युवा अवस्था की एक तस्वीर.

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