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बॉलीवुड का एक ऐसा कलाकार जिसने अमन और शांति के लिए किया था 2000 किलोमीटर की पदयात्रा

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बॉलीवुड में तो कई कलाकार आए और गए पर इस बीच कई ऐसे नाम हमारे दिल में हमेशा के लिए बस जाते हैं जो ऐसा कुछ कर जाते हैं जिसकी उम्मीद शायद कभी नहीं की जा सकती. एक ऐसा ही नाम सुनील दत्त का था जिन्होंने अभिनय की दुनिया से लेकर राजनीति में कई ऐसे कारनामे किए जिसने लोगों को उनका मुरीद बना दिया. राजनीति में आने के बाद उन्होंने अमन और शांति के लिए 2000 किलोमीटर तक की पद यात्रा बिना कोई चिंता के की थी. आज हम आपको बताएंगे किस प्रकार बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार सुनील दत्त ने फिल्मों के साथ-साथ देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया और उसका क्या परिणाम निकला.

बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार सुनील दत्त का जीवन परिचय
सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 को पंजाब में हुआ था जो कि अब पाकिस्तान में स्थित है. उनकी शुरुआती शिक्षा जय हिंद कॉलेज मुंबई, भारत से हुई थी. बाद में उन्होने इतिहास से स्नातक किया. वह अपनी शुरुआती दिनों में रेडियो स्टेशन में काम किया करते थे, जिसके बाद उन्हें फिल्मों में काम करने का अवसर मिला. साल 1955 में उन्हें अपनी पहली फिल्म रेलवे स्टेशन में काम करने का मौका मिला, जिसमें उनके अभिनय को काफी पसंद किया गया.1950 के दशक के अंत में उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत कर दी थी और मदर इंडिया, वक्त, पड़ोसन और मेरा साया, जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय से हर किसी के दिल में जगह बनाई. उन्होंने 50 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया और कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया. साल 2003 में बनी मुन्ना भाई एमबीबीएस में बतौर अभिनेता ये उनकी अंतिम फिल्म थी. इस फिल्म में दत्त साहब अपने ही पुत्र संजय दत्त के पिता की भूमिका में थे.

पंजाब में उनके 2000 किलोमीटर यात्रा करने की वजह
एक बेहतरीन कलाकार होने के साथ-साथ सुनील दत्त उतने ही शानदार नेता भी थे. उनके आज कई ऐसे किस्से हैं जो इस बात को बखुबी साबित करते हैं. वह जब नेता बने तो आम लोगों के लिए काफी सक्रिय रहते थे. साल 1987 के दौरान पंजाब में जब खालीस्तान उग्रवादी आंदोलन चरम पर था. उस वक्त सुनील दत्त ने सद्भाव व भाईचारे के लिए मुंबई से अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर तक के लिए शांति पदयात्रा निकाली थी. 78 दिन तक चली इस पदयात्रा में उनके साथ 80 से ज्यादा बड़े नेता जुड़े थे. यह यात्रा 2000 किलोमीटर की थी जिस दौरान उन्होंने 500 से ज्यादा सभा की. उनके पैर पर छाले पड़ गए थे पर उन्होंने इसकी कोई परवाह नहीं की. उस दौरान तेज चिलचिलाती धूप थी पर उन्होंने पंजाब में बढ़ते उग्रवाद के बीच शांति के लिए इस यात्रा को रोकने के बारे में एक बार भी नहीं सोचा. जब वह अमृतसर पहुंचे तो उनके स्वागत के लिए एक बहुत बड़ा हुजूम उमर पड़ा. उनके शांति और भाईचारे के पैगाम से पंजाब में काफी असर नजर आया और वहां काफी हद तक शांति भी कायम होने लगी. दत्त साहब हमेशा भारतीयों के दिल में जिंदा रहेंगे.

पत्नी नर्गिस और बेटे संजय दत्त के साथ दत्त साहब.

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