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भारत का एक ऐसा सीरियल किलर जिसने रुमाल से दिया था 900 से ज्यादा घटनाओं को अंजाम

एक था खलनायक

भारत का एक ऐसा सीरियल किलर जिसने रुमाल से दिया था 900 से ज्यादा घटनाओं को अंजाम

इतिहास में अगर एक नजर डालें तो कई ऐसे सीरियल किलर की कहानी आपको देखने को मिलेगी, जिसने अलग-अलग तरीके से लोगों को ठगा और उनकी हत्याएं की, पर आज हम आपको एक ऐसे सीरियल किलर की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने लोगों को ठगने का और गलत घटनाओं को अंजाम देने का एक अलग ही तरीका अपनाया था. कुख्यात सीरियल किलर ठग बहराम ने केवल रुमाल से 900 से ज्यादा घटनाओं को अंजाम दिया था और कई बड़ी-बड़ी हत्याओं में भी इसका नाम शामिल था, पर आखिरकार इसका अंत हुआ और उसे फांसी के फंदे पर चढ़ना पड़ा

भारत के कुख्यात सीरियल किलर ठग बहराम का परिचय* : सीरीयल कलर के रूप में पहचाने जाने वाले ठग बहराम का जन्म 1765 ईस्वी में मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ था. बचपन से ही उसकी दोस्ती अपने से 25 साल बड़े कुख्यात सैयद अमीर अली से हो गई थी और इसी संगति में आकर उसने अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर ली. सैयद अली की राह पर चलते हुए उसने ठगी, हत्या और लूट करना सीखा. 25 साल की उम्र तक आते-आते वह ठग की दुनिया का सरदार बन गया जिसके गिरोह में 200 क्रूर हत्यारे शामिल थे. 50 साल की उम्र में उसने रुमाल के जरिए लगभग 900 से ज्यादा लोगों की गला घोट कर हत्या की थी. यही वजह है कि इसे किंग ऑफ ठग भी कहा जाता है. 1790 से लेकर 1840 के बीच इसका खौफ इस कदर था कि अंग्रेज भी इससे घबराते थे.दिल्ली से लेकर ग्वालियर और जबलपुर तक इसका इस कदर खौफ था कि व्यापारियों ने रास्ता तक चलना बंद कर दिया था. व्यापारियों, पर्यटकों, सैनिकों और तीर्थ यात्रियों का पूरा काफिला रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता था और पुलिस छानबीन करने के बावजूद भी इन लोगों का लाश तक नहीं ढूंढ पाती थी.

पीले रुमाल और सिक्कों की मदद से 900 से अधिक हत्याओं को अंजाम देने की कहानी*
बहराम ने अपनी पूरी जिंदगी में 931 लोगों को मौत के घाट उतारा था और उसने इन हत्याओं का जुर्म भी कबूल लिया था. कहा जाता था कि जब भी बहराम किसी रास्ते से गुजरता था तो वहां लाशों की ढेर लग जाती थी. वह अपने साथ एक रुमाल रखता था और इस रुमाल से गला घोट कर उसने 900 से अधिक लोगों की हत्या की थी. यही वजह है कि इस जुर्म के लिए उनका नाम गिनीज बुक में भी दर्ज है. कहा जाता है कि लोगों के सो जाने के बाद गिरोह के लोग गीदड़ के रोने की आवाज में एक दूसरे को संकेत भेजते थे. इसके बाद बहराम, गिरोह के बाकी लोगों के साथ वहां पहुंचकर पीले रंग के एक टुकड़े जिसमें एक धारदार सिक्का होता था, उससे काफिले के लोगों का गला रेत देता था.

इसी अंदाज में बरहाम लोगों का गला घोंटा देता था.

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