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केंद्र शासित प्रदेश में मुख्यमंत्री की जगह यह व्यक्ति होता है शासन का केंद्र, दिल्ली में टकराव कि यह है वजह
हम बचपन से भारत की राजधानी के साथ-साथ यहां के केंद्र शासित प्रदेशों के बारे में भी पढ़ते आ रहे हैं, जिसे कुछ विशेष दर्जे प्राप्त होते हैं, पर यहां पर राज्यो की तरह मुख्यमंत्री नहीं होता, बल्कि यहां मुख्यमंत्री के बजाय अन्य व्यक्ति को शासन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है. जब बात दिल्ली की आती है तो यह सारी बात एक तरफ हो जाती हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि लगातार दिल्ली में उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव देखने को मिलती है. आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह केंद्र शासित प्रदेशों में शासन किया जाता है और दिल्ली में काफी लंबे समय से इस मुद्दे पर क्यों टकराव चल रहा है.
केंद्र शासित प्रदेश क्या होता है
केंद्र शासित प्रदेश ऐसा क्षेत्र होता है जहां का प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के द्वारा संचालित किया जाता है. भारत में इस वक्त आठ केंद्र शासित राज्य है. दरअसल केंद्र शासित राज्यों में भी अपनी सरकार चुनने का नियम होता है, परंतु उन सभी केंद्र शासित राज्यों को केंद्र सरकार के अंतर्गत ही काम करना होता है, जिसमें अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दादर और नगर हवेली एवं दमन और दीव, दिल्ली, लद्दाख, लक्षद्वीप, जम्मू और कश्मीर, पुडुचेरी शामिल है. केंद्र शासित प्रदेश संघीय क्षेत्र है और भारत की केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित है. यह उन क्षेत्रों को संदर्भित करता है जो स्वतंत्र होने के लिए बहुत छोटे हैं या आसपास के राज्यों के साथ विलय करने के लिए बहुत अलग है. उपराज्यपाल यहां पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है और इनके माध्यम से ही केंद्र सरकार उस प्रदेश में अपना शासन करती है. आपको बता दे कि केंद्र शासित प्रदेशों में जम्मू और कश्मीर, पुडुचेरी और दिल्ली में भी विधानसभा की व्यवस्था की गई है. इन राज्यों में उप राज्यपाल की नियुक्ति है जबकि बाकी की केंद्र शासित प्रदेशों में प्रशासक की नियुक्ति की जाती है. अगर लेफ्टिनेंट गवर्नर की शक्तियों पर चर्चा करें तो वह केंद्र शासित प्रदेश का वास्तविक प्रशासक होता है. उपराज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाता है. विधानसभा का विघटन और स्थगन करने का अधिकार भी उनके पास होता है. उप राज्यपाल के पास बिल को पास करने या ना करने का अधिकार होता है. साथ ही साथ वह किसी भी मुद्दे पर या लंबित विधेयक पर राज्य विधानसभा को संदेश भेजने का अधिकार रखते हैं. बिलों को विधानसभा में पेश करने से पहले उपराज्यपाल की सहमति होनी चाहिए.
दिल्ली में लेफ्टिनेंट गवर्नर और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच लंबे समय से टकराव की स्थिति क्यों बनी हुई है
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद राजनीति ने एक अलग रुख अपना लिया है. केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली के प्रशासनिक मामलों में केंद्र सरकार का वर्चस्व है तो वहीं दो बार विधानसभा चुनाव मजबूती से जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल सभी शक्तियों को राज्य सरकार के अंतर्गत लाना चाहते हैं. राष्ट्रीय राजधानी होने की वजह से राज्य सरकार को प्रशासनिक शक्ति प्रदान नहीं किया जा सकता है. आप पार्टी का आरोप है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर राज्य सरकार के सभी कार्यों में बाधा डाल रहे हैं. क्योंकि एलजी की नियुक्ति भाजपा ने की है इस वजह से एलजी और दिल्ली राज्य सरकार में समन्वय नहीं बन पा रहा है.