धर्म- कर्म
श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाने के पीछे है यह वजह, जन्माष्टमी के दिन रखें इन बातों का विशेष ख्याल
हर साल जन्माष्टमी का इंतजार कृष्ण भक्त बड़े ही बेसब्री से करते हैं, जिस दिन वह कान्हा जी के लिए 56 भोग तैयार करते हैं और उनकी पूजा करते हैं. दरअसल भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाने के पीछे एक बहुत बड़ी पौराणिक कथा है जो सदियों से चली आ रही है. हर साल जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार भी हर साल की तरह जन्माष्टमी के दिन कान्हा जी की मूर्ति को साज सिंगार करके सजाया जाएगा और उनका जन्मदिन मनाया जाएगा. इस दिन बड़े ही खास तरीके से पूजा पाठ की जाती है, जहां श्री कृष्ण के मंदिरों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर इस बार जन्माष्टमी किस दिन मनाई जा रही है. इसका शुभ मुहूर्त और पूजा करने की विधि क्या है.
जन्माष्टमी का परिचय*
जन्माष्टमी का पर्व हर साल श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व पुरी दुनिया में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. द्वापर युग में युग पुरुष के रूप में असामान्य शक्तियों के साथ श्री कृष्ण ने भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र के मध्य रात्रि में कंस के कारागृह में जन्म लिया. कृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है. यही वजह है कि हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष को जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं. इस बार जन्माष्टमी का त्योहार बुधवार 6 सितंबर 2023 को मनाया जाएगा जो श्री कृष्ण की 5250 जयंती जन्माष्टमी होगी. इंसान को छप्पन भोग लगाने के पीछे की कहानी भी द्वापर युग से ही जुड़ी हुई है. जब इंद्रदेव की प्रकोप से बृजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, तब उन्हें लगातार सात दिन भूखा रहना पड़ा था. उसके बाद 7 दोनों के हिसाब से उनके लिए माता यशोदा ने 56 भोग तैयार किए गए थे और इस घटना के बाद से ही श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाने की परंपरा की शुरुआत हुई.
जन्माष्टमी के दिन कैसे करें पूजा*
जन्माष्टमी के दिन सबसे पहले स्नान करके सभी देवताओं को नमस्कार करें. पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जाएं. हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प ले. उसके बाद काले तिल का जल छिड़क कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं. अब इस सूतिका गृह में सुंदर सा बिछौना बिछाकर उस पर कलश स्थापित करें. भगवान कृष्ण और माता देवकी जी की मूर्ति या सुंदर चित्र स्थापित करें. देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेते हुए पूजा करें. यह व्रत 12:00 के बाद ही खोला जाता है. इस बात का ध्यान रखें की जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की पूजा के दौरान उन्हें मुरझाए फूल अर्पित ना करें. व्रत के दौरान गायों को भूलकर भी ना सताए. इससे पूजा और व्रत का फल नहीं मिलता. साथ ही साथ इस दिन बड़े बुजुर्गों का अपमान ना करें और अपने वाणी और जुबान पर नियंत्रण रखें.
जन्माष्टमी का उपवास रखने कैसे और कब करें फलाहार : जन्माष्टमी का व्रत रखने से भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह अपने भक्तों के सभी कष्ट को दूर करते हैं. इस व्रत के 1 दिन पहले यानी सप्तमी के दिन हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए. इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता. फलाहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटा का हलवा आप खा सकते हैं. कृष्ण जन्मोत्सव के दिन इस व्रत को रखा जाता है और रात में 12:00 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद प्रसाद वितरण करके अपना व्रत आप खोल सकते हैं.