धर्म- कर्म
भारत में जन्माष्टमी पर बहुत से क्षेत्र में मनाई जाती है दही-हांडी, इस उत्सव के पीछे है खास वजह
भगवान श्री कृष्णा के लिए जन्माष्टमी का दिन बेहद ही खास होता है. इस पावन त्योहार पर उन्हें 56 भोग लगाकर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनके साथ सिंगार किया जाता है. इतना ही नहीं जन्माष्टमी के इस शुभ अवसर पर छोटे बच्चे को राधा और कृष्णा भी बनाया जाता है. जन्माष्टमी के दिन एक चीज बेहद ही खास होती है और वो है दहीहंडी, जिसके लिए लोग साल भर इंतजार करते हैं, पर आपको बता दे कि दही हांडी की शुरुआत को लेकर एक बेहद ही रोचक और पुरानी कथा है जहां कई दशक से यह परंपरा चली आ रही है और आज भी यह निभाया जाता है. इस परंपरा का श्री कृष्ण से बेहद ही खास लगाव है, जिस वजह से दहीहंडी तोडी़ जाती है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई और किन-किन जगहों पर यह मनाया जाता है.
दही हांडी का परिचय
दही हांडी का महत्व हिंदू धर्म में बेहद ही खास है. इस पर्व को कान्हा की बाल- लीलाओं का प्रतीक माना जाता है. दही हांडी का उत्सव मूल रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत देश के कई अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है. यह मूल रूप से एक समुदाय कार्यक्रम है जो लोगों को एक मानव पिरामिड बनाने और जमीन के ऊपर लटकाए गए दही से भरे मिट्टी के बर्तन को तोड़ने के लिए एक साथ लाता है. यह एक खेल के रूप में होता है जिसके लिए कई जगह पर इनाम भी दिए जाते हैं. द्वापर युग से ही दहीहंडी उत्सव की परंपरा चली आ रही है. कान्हा को दूध, दही और मक्खन बेहद प्रिय है. बचपन में वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर आस पड़ोस के घरों में जाकर माखन चुरा कर खाते थे. यही वजह है कि माखन चोरी होने से परेशान होकर गोपियों ने माखन को एक मिट्टी के बर्तन में भरकर ऊंचे स्थान पर लटकाना शुरू कर दिया. इसके बावजूद भी कान्हा इस माखन को अपने दोस्तों के साथ मिलाकर चुरा लिया करते थे. श्री कृष्ण की इस लीला को ही दहीहंडी उत्सव के रूप में मनाया जाता है और यहीं से यह परंपरा चली आ रही है.
भगवान श्री कृष्ण की कुछ प्रमुख लीलाएं
कृष्ण चंचल और कामुक गतिविधियों को अक्सर अंजाम देते थे, जिसमें वह ब्रज की गोपी और युवा दूधियों के साथ खेलते थे. विशेष रूप से अपनी पसंदीदा राधा के साथ. अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का उन्होंने वध किया. उसके बाद सकटासुर, तृणावर्त आदि रक्षा का वध किया. बाद में जब गोकुल छोड़कर नंद गांव आ गए तो वहां भी उन्होंने कई लीला की, जिसमें गोचरण लीला, गोवर्धन लीला, रासलीला आदि प्रमुख है. उसके बाद उन्होंने मथुरा में मामा कंस का वध किया.