श्री कृष्ण के तो कई मंदिर भारत में विराजमान हैं, पर एक मंदिर ऐसा है जहां पर श्री कृष्णा नहीं बल्कि उनकी बहन की पूजा की जाती है. जब श्री कृष्ण के मामा कंस उन्हें मारना चाहते थे तो उनकी इसी बहन ने उन्हें जीवन दान दिया था और कंस के प्रकोप से बचाया था, तभी से उनके इस बहन की पूजा की जाने लगी. अगर आप भी कृष्ण की बहन के दिव्य दर्शन करना चाहते हैं तो मिर्जापुर में आपको एक विशाल मंदिर देखने को मिलेगा, जहां हर साल भक्त अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों श्री कृष्ण की इस बहन की पूजा होती है और इसके पीछे की कहानी क्या है.
माता विंध्यवासिनी का परिचय* मां विंध्यवासिनी देवी दुर्गा के पराशक्ति रूपम में से एक है. ऐसी मान्यता है कि जहां-जहां सती के अंग गिरे थे वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गई. त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा माँ सरस्वती का रूप धारण करती है. कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिद्धि प्राप्त होती है. भारत में विंध्यवासिनी देवी का चमत्कारी मंदिर विद्यांचल की पहाड़ी श्रृंखला के मध्य मिर्जापुर उत्तर प्रदेश पतित पावनी गंगा के कंठ पर बसा हुआ है. यह तीर्थ भारत के उन 51 शक्ति पीठ में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगा तट पर स्थित है. जब योग माया ने कृष्ण की जान बचाई तब देवताओं ने उन्हें कहा कि आप धरती पर से देवलोक में चले, तभी देवी ने कहा कि नहीं अब मैं धरती पर भिन्न रूप में रहूंगी जो भक्त मेरा जैसा ध्यान करेगा मैं उसे उस रूप में दर्शन करुंगी, तब देवताओं ने देवी का विद्यांचल में एक शक्तिपीठ बनाकर उनकी स्तूति की और देवी वही विराजमान हो गई. देवी योग माया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है, जबकि शिव पुराण में उन्हें शति का अंश बताया गया है. यहां इस मंदिर के 3 किलोमीटर के दायरे में अन्य दो प्रमुख देवियां भी विराजमान है. इसके पास ही काली खोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान है.
माता विंध्यवासिनी को क्यों कहा जाता है कृष्णानुजा, योग माया की कहानी* चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर विंध्यवासिनी मंदिर में देश के कोने-कोने से भक्त इकट्ठा होते हैं. कहा जाता है कि शृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता है. जब कृष्ण की माता का देवकी ने गर्भ से अष्टम पुत्र के रूप में भगवान कृष्ण को जन्म दिया तो इस दौरान गोकुल में यशोदा मैया के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ था. वासुदेव बालकृष्ण को लेकर कारागार से निकलकर यमुना पार कर गोकुल पहुंचे और उन्होंने इसी रात को बालकृष्ण को यशोदा मैया के पास सुला दिया और वह उनकी पुत्री को उठाकर ले आए. यह कार्य भगवान की माया से हुआ. भगवान कृष्ण की मां देवकी के सातवें गर्भ को योग माया ने हीं बदलकर रोहिणी के गर्भ में पहुंचा था जिससे बलराम का जन्म हुआ. बाद में योग माया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था. कहा जाता है कि कंस से बालकृष्ण को बचाने के लिए ही योग माया ने जन्म लिया था.