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ब्रह्मा जी ने स्वयं की थी महादेव के इस मंदिर की स्थापना, ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करने का है विशेष महत्व

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भारत में भगवान शिव के अनेकों ऐसे मंदिर है जो अलग-अलग चमत्कार की वजह से पूरी दुनिया में पहचाने जाते हैं. उसी में से महादेव का एक मंदिर ऐसा है जिसकी स्थापना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी. कहा जाता है कि अगर ब्रह्म मुहूर्त में यहां पर पूजा पाठ किया जाए तो इसका विशेष लाभ मिलता है. यही वजह है कि इसकी लोकप्रियता और भी ज्यादा बढ़ जाती है. आज हम आपको हरिद्वार के इस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर शिव पार्वती की अटूट प्रेम की कहानी नजर आई थी. इतना ही नहीं इस मंदिर में कई ऐसी खास बातें हैं जिस वजह से भक्तों का यहां पर ताता लगा रहता है.

ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर का परिचय
दक्षेश्वर महादेव मंदिर कनखल हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित है.इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांव के निशान बने हैं. मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में भगवान शिव जी के वाहन नंदी महाराज विराजमान है. इसमें एक छोटा सा गड्ढा है जिसके बारे में यह माना जाता है कि इस गड्ढे में देवी सती ने अपने जीवन का बलिदान दिया था. इस मंदिर का निर्माण रानी धरकौर ने 1810 ईस्वी में करवाया था. मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा ने ही सृष्टि की रचना की थी. उस वक्त शिव का आह्वाहन कर उनके आदि रूप की स्थापना की गई. इसी वजह से इस मंदिर को ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है.

इस मंदिर के स्थापना की कहानी : जब सृष्टि की रचना के लिए भगवान विष्णु और 33 करोड़ देवी देवताओं ने प्रजापति ब्रह्मा से प्रार्थना की तो उन्होंने सबसे पहले विघ्नहर्ता गणपति का आह्वान किया और फिर भगवान शिव का आह्वान करके पूजा के लिए सबसे पहला मंदिर बनवाया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के पिता प्रजापति राजा दक्ष ने कनखल तीर्थ नगरी में एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को बुलाया पर उन्होंने अपने दामाद और अपनी पुत्री सती के पति भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया. जैसे ही सती को इस बात का पता चला तो वह शिव जी से यज्ञ में भाग लेने की जिद करने लगी परंतु शंकर ने उन्हें वहां जाने से मना कर दिया. उनकी जिद देखकर भगवान शंकर सती के साथ कैलाश पर्वत हिमालय से कनखल प्रस्थान कर गए परंतु कनखल जाने के बजाय चंडी देवी पर्वत माला में ही वह रुक गए और वहां से उन्होंने अपने गणों के साथ सती को कनखल में यज्ञ स्थल पर भेज दिया. जब सती अपने मायके में यज्ञ स्थल पर पहुंची तो उन्होंने वहां पर अपने पति भगवान शंकर का आसान नहीं पाया. इतना ही नहीं प्रजापति राजा दक्ष ने भोलेनाथ के बारे में कई अपशब्दों का इस्तेमाल किया जिस वजह से माता पार्वती अपने मायके में पति का अपमान होते देख क्रोधित हो गई और उन्होंने पिता की बातों का प्रतिकार किया. इसके बाद यज्ञ कुंड में कूदकर उन्होंने अपने शरीर को जलाकर अपने प्राण त्याग दिए. जब सती के निधन का समाचार शंकर को पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर अपनी जटाओं से वीरभद्र नामक गण की उत्पत्ति की. इसके बाद वीरभद्र ने प्रतिशोध में राजा दक्ष की गर्दन काटकर यज्ञ कुंड में डाल दी. इसके बाद उनका सिर भस्म हो गया. सभी देवी देवताओं और राजा दक्ष की पत्नी ने राजा दक्ष को जीवन दान देने की कामना की, जिसके बाद शंकर ने राजा दक्ष की गर्दन की जगह पर बकरे का सर लगाया और उन्हें जीवन दान दिया. उसके बाद राजा दक्ष ने शंकर से अपने किए पर क्षमा मांगा और कनखल में ही निवास करने की प्रार्थना की. उसके बाद से ही भगवान शंकर ने स्वयंभू शिवलिंग प्रकट किया जिसका नाम दक्षेश्वर महादेव है.

दक्षेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में लगी महादेव की एक प्रतिमा.

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