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एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर इस वजह से सहमति नहीं दे पा रहा विपक्ष, सता रही यह चिंता

गरम मुद्दा

एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर इस वजह से सहमति नहीं दे पा रहा विपक्ष, सता रही यह चिंता

काफी लंबे समय से वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर चर्चा चल रही है, जिस पर पक्ष और विपक्ष में तीखी बहस भी हो रही हैं. लगातार इस पर विपक्ष अपनी असहमति जाता रहा है. उनका मानना है कि वन नेशन वन इलेक्शन की वजह से उन्हें काफी नुकसान होंगे और इसका आम जनता पर भी बुरा प्रभाव देखने को मिलेगा. वहीं दूसरी ओर केंद्र में बैठी सरकार पूरी तरह इसके पक्ष में नजर आ रही है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर किस तरह एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करने की बात की जा रही है और आखिर विपक्ष को किस बात का डर सता रहा है.

एक राष्ट्र एक चुनाव का कॉन्सेप्ट क्या है
एक देश एक चुनाव एक ऐसा कांसेप्ट है जिसमें लोकसभा और सभी राज्य विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है. इसका मतलब है कि पूरे देश में एक ही चरण में चुनाव होंगे. मौजूदा समय में हर 5 साल में लोकसभा और राज्य विधानसभा के लिए हर तीन से पांच साल में चुनाव होते हैं. वन नेशन वन इलेक्शन के तहत पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होंगे. यही नहीं मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन एक ही समय या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे. दुनिया के कई देश पहले से ही ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के फॉर्मूले पर चल रहे हैं. इन देशों में जर्मनी, हंगरी, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, स्पेन, स्लोवेनिया, अल्बानिया, पोलैंड और बेल्जियम जैसे देशों में एक ही बार चुनाव कराने की परंपरा है. पिछले दिनों स्वीडन ने भी एक साथ अपने चुनाव कराए थे, जिसके बाद ये भी उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया जो वन नेशन वन इलेक्शन के फॉर्मूले पर चल रहे हैं.

भारत में सभी विपक्षी दल इस नियम के लिए क्यों सहमति नहीं दिखा रहे हैं
एक साथ चुनाव कराने को लेकर विपक्षी दल का डर यह है कि वह अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे, क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र में है. इसके साथ ही वे चुनाव खर्च और चुनाव रणनीति के मामले में प्रतिस्पर्धा करने में भी असमर्थ होंगे. इतना ही नहीं यह भी कहा जाता है कि एक साथ चुनाव होने से क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुंच सकता है. वजह यह बताई जाती है कि इससे वोटरों के एक ही तरफ वोट देने की अधिक संभावना होगी, जिससे केंद्र सरकार में प्रमुख पार्टी को ज्यादा फायदा हो सकता है. विपक्ष को बस इस बात का डर है कि अगर पूरे देश में एक बार चुनाव होते हैं तो कहीं मोदी लहर में अधिकतर राज्यों में बीजेपी की सरकार न बन जाए और वह चुनाव हार ना जाए.

एक राष्ट्र एक चुनाव के पांच फायदे
1. एक साथ चुनाव कराने से चुनाव में होने वाली लागत में कटौती होगी.

2. एक साथ चुनाव कराने से पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी जिसे केंद्र और राज्य सरकार की नीति और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी.

3. इससे देश के संसाधनों की बचत होगी जिस कारण विकास की गति और तेज होगी.

4. एक साथ चुनाव होने से रेलवे व्यवस्था और सेना की सुरक्षा पर तनाव कम होगा.

5. चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा से ज्यादा समय मिलेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए संकल्पित बयान दिए हैं.

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