कश्मीरी पंडितों की पलायन की कहानी से आज कोई भी अनजान नहीं है. जब पंडितों को जान से मार दिया गया और उन्हें इस्लाम कबूल करने की धमकी दी गई. यह सिलसिला इतना भयानक था कि जब इसकी चर्चा होती है तो लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उस वक्त बच्चों से लेकर बुजुर्ग ने इसे झेला था. आज तक देखा जाता है कि कश्मीरी पंडित वहां से पलायन कर रहे हैं. इसे सिस्टम की विफलता कहा जाए या सरकार की नाकामी, जिस वजह से कश्मीरी पंडितों को इतना कुछ झेलना पड़ा. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर कश्मीर में ऐसा क्या कुछ हुआ जिस वजह से कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़ा और उन्हें काफी परेशानी झेलनी पडी़.
कश्मीरी पंडित का परिचय देश के जम्मू कश्मीर में तीसरी सदी ईसा पूर्व से सारस्वत ब्राह्मण का एक समूह यहां रहता आया है. पंचगौर समूह के यह ब्राह्मण हैं. कई मामलों में देश के अन्य ब्राह्मण समूह जैसे द्रविड़ आदि से इनमें काफी विभिन्नताएं हैं. यह एकमात्र कश्मीरी हिंदू जाति एवं राज्य के वह मूल निवासी थे. बताया जाता है कि वे जम्मू और कश्मीर के भारत की केंद्र शासित प्रदेश में पहाड़ी क्षेत्र कश्मीर घाटी से संबंधित है. 1990 के दशक के दौरान 140000 कुल कश्मीरी पंडित की आबादी थी जिसमें से एक लाख ने घाटी छोड़ दी. इसकी शुरुआत 1987 से होती है जब राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं. धंधाली के आरोप लगते हैं और यहीं से हिंसा की शुरुआत होती है. इस चुनाव में श्रीनगर के आमिर कदल से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के युसूफ शाह भी चुनाव लड़ रहे थे. रुझानों में यूसुफ आगे थे लेकिन वह चुनाव हार गए. इसके विरोध में युवा सड़कों पर आ गए. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वे कई महीने तक जेल में रहे. तब नेशनल कांग्रेस की सरकार थी और फारूक अब्दुल्ला सीएम थे. उस वक्त हमारे देश में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. जब 1989 में जेकेएलएफ ने कश्मीर छोड़ो का नारा दिया उस वक्त वहां पर हत्याओं का दौर शुरू हो चुका था, जिससे बाहर निकालना नामुमकिन था. इसकी कीमत बेगुनाह पंडितों और बेगुनाह मुसलमान को भी चुकानी पड़ी. 1989 आते-आते कश्मीरी पंडितों की हत्या शुरू हो गई थी. उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद लिस्ट बनाकर कश्मीरी पंडितों की हत्या होने लगी. इश्तिहार छपने लगे, पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहा जाने लगा और कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजे पर नोट लगा दिया जिसमें लिखा था या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो. कश्मीरी पंडित माखन ने बताया कि उस वक्त स्थिति ऐसी थी कि पंडितों को मार कर गिराया रहा था और लोग बस खिड़कियों से तमाशा देख रहे थे . उस वक्त रिश्तेदार भी घर नहीं आते थे.
कश्मीरी पंडितों की पलायन के पीछे सरकार के नाकामी और सिस्टम का फेल्योर* जब देश में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार शुरू हुआ था, तब केंद्र सरकार ने जगमोहन को दोबारा गवर्नर बनाया. तब काफी देर हो चुकी थी. इसके बाद 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया. लगभग ढाई सौ दिनों तक देश में राष्ट्रपति शासन लागू रहा परंतु कश्मीरी पंडितों के लिए केंद्र सरकार ने कोई ऐसा ठोस कदम नहीं उठाया जिससे उनका पलायन रोका जा सके. 20 जनवरी की रात बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. इसके बाद कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया परंतु ना राज्य सरकार ने और ना ही केंद्र सरकार ने इस मामले में तत्परता दिखाई. भले ही आज कांग्रेस पूरे देश में समाजवाद, न्याय,समानता और लोकतंत्र की बात करती हो परंतु जिस दिन कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार हो रहा था उसे दिन उनके यह सिद्धांत धरे के धरे रह गए.