भारत में रहने वाले हर भारतीय का यह फर्ज है कि वह तिरंगे का सम्मान करे और उसके सम्मान के लिए खड़ा रहे. भारत में सनातन के लिए सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध संस्था आरएसएस पर बराबर यह आरोप लगाता आया है कि वे भारतीय ध्वज तिरंगा का सम्मान नहीं करते हैं. इसी आरोप का जवाब देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख से जब सवाल किया गया तो उन्होंने इसका करारा जवाब दिया. साथ ही साथ उन्होंने आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार की एक ऐसी कहानी सुनाई जिसे सुनकर हर कोई चौक गया. आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह आरएसएस पर लगे इल्जाम को मोहन भागवत ने सरासर नकारते हुए एक ऐसी कहानी बताई, जिसके बाद सभी को माकूल जवाब मिल गया है.
आरएसएस का परिचय और इसके संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार का जीवन परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक हिंदू, राष्ट्रवादी, स्वयंसेवक संगठन है जो व्यापक रूप से भारत में सनातन धर्म के रक्षा के लिए प्रतिबद्ध माना जाता है. यह संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान भी है. इस संघ में व्यक्ति नहीं तत्व को प्रमुख माना जाता है. ये भगवा ध्वज को ही गुरु माना है. यह संघ 96 वर्ष के कालखंड में समाज की अपेक्षा तथा विश्वास की कसौटी पर खड़ा उतरा है. आरएसएस की स्थापना 1925 में विजयदशमी के दिन नागपुर में डॉक्टर केशव राव बलिराम हेडगेवार जी के द्वारा की गई थी. उनका जन्म 1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ. बचपन से उनके मन में यह सवाल था कि आखिर हम गुलाम क्यों हैं. उनके अंदर बचपन से ही राष्ट्र के नाम पर मर मिटने की चाहत थी. जब 1905 में अंग्रेजों ने वंदे मातरम के नारे पर पाबंदी लगा दी, उस वक्त उन्होंने वंदे मातरम का नारा लगाया था और धीरे-धीरे यह गूंजने लगा. हालांकि उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था लेकिन बाद में दूसरे स्कूल में उन्होंने दाखिला लेकर अपनी शिक्षा पूरी की. वह एक ऐसा संगठन बनाना चाहते थे जो अंग्रेजों के खिलाफ लडे़ व हिंदू समाज की जड़ों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक और दार्शनिक स्तर पर मजबूत करें. इसी सोच के साथ उन्होंने आरएसएस की स्थापना की. यह इसकी पहली शाखा थी जो मुंबई में खोली गई थी जो 7 स्वयंसेवकों के साथ शुरू की गई थी.
मोहन भागवत जी ने इस आरोप पर क्या जवाब दिया : जब आरएसएस के सर संघ चालक मोहन भागवत से यह पूछा गया कि आरएसएस ने 1950 से 2002 तक अपने मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज क्यों नहीं फहराया तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को हम जहां भी होते हैं राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, जहां पर देश के सम्मान का प्रश्न है, राष्ट्र ध्वज के सम्मान का प्रश्न है वहां पर हम सबसे आगे आपको मिलेंगे लड़ने के लिए प्राण देने के लिए. फिर सवाल का जवाब देते हुए मोहन भागवत ने एक कहानी सुनाई और बताया कि जब पहली बार 80 फीट ऊंचे खंबे पर जवाहरलाल नेहरू के हाथ में रस्सी देकर ध्वज फहराया गया तो वह बीच में लटक गया था फिर एक जवान दौड़ा आया. बांस पर 40 फीट ऊपर चढ़कर जवान ने झंडे को ठीक किया और फहराया. वह जवान जब नीचे आया तो सब ने उसकी जय जयकार की. नेहरू ने उसकी पीठ थप- थपाई और कहा कि कल अधिवेशन में आओ, तुम्हारा सार्वजनिक अभिनंदन करेंगे लेकिन कुछ लोगों ने उनको जाकर बताया कि यह संघ की शाखा में जाता है. तब उसको नहीं बुलाया गया. भागवत ने आगे बताया कि इसके बारे में जब हेडगेवार को पता चला तो उन्होंने उस शख्स को पीतल का लोटा देकर सम्मानित किया. उस शख्स का नाम किशन सिंह राजपूत था जिसका अभी 7 साल पहले निधन हो गया. इसका साफ अर्थ है कि आज से ही नहीं परंतु आजादी के पहले से ही आरएसएस राष्ट्रीय ध्वज को अपना आन, बान और शान मानती है.