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आज पूरा भारत मना रहा है पृथ्वी के रचयिता बाबा विश्वकर्मा की जयंती, वर्षों बाद आया है शुभ संयोग

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हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाने वाला विश्वकर्मा पूजा पृथ्वी के रचयिता बाबा विश्वकर्मा को समर्पित है, जिसे बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है. हिंदू वास्तु कला के देवता भगवान विश्वकर्मा को सम्मान देने के लिए हर साल इस दिन उनकी पूजा अर्चना की जाती है, जिनसे लोग व्यापार में उन्नति और तरक्की का आशीर्वाद मांगते हैं. इस बार विश्वकर्मा पूजा पर कई सालों बाद शुभ योग बन रहे हैं, जो भक्तों के लिए काफी लाभदायक साबित होने वाला है. आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह सृष्टि के रचयिता विश्वकर्मा जी की जयंती को खास तरीके से मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है.

ब्रह्मा जी के 7वें पुत्र और पृथ्वी के रचयिता भगवान विश्वकर्मा जी का परिचय
भगवान विश्वकर्मा का जन्म भादो मास में हुआ था. मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के लिए रहने को भव्य महल, आलीशान भवन, हथियार और सिंहासन का निर्माण किया था. उन्होंने रावण की लंका, कृष्ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया था. भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति ऋग्वेद में हुई है जिसमें उन्हें ब्रह्मांड के निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है. भगवान विष्णु और शिवलिंगम के नाभि से उत्पन्न भगवान ब्रह्मा की अवधारणाएं विश्वकर्मा सूक्त पर आधारित है. पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इस समस्त ब्रह्मांड की रचना विश्वकर्मा जी के हाथों से हुई है. ऋग्वेद के दसवें अध्याय के 121वें सूक्त में लिखा है कि विश्वकर्मा जी के द्वारा ही धरती, आकाश और जल की रचना की गई है. सृष्टि को संवारने की जिम्मेदारी ब्रह्मा जी ने विश्वकर्मा को सौंपी. ब्रह्मा जी को अपने वंशज और भगवान विश्वकर्मा की कला पर पूर्ण विश्वास था. जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो वह एक विशालकाय अंडे के आकार की थी. उस अंडे से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई. बाद में ब्रह्मा जी ने इसे शेषनाग की जीभ पर रख दिया. शेषनाग के हिलने से सृष्टि को नुकसान होता था. इस बात से परेशान होकर ब्रह्मा जी ने भगवान विश्वकर्मा से इसका उपाय पूछा तो विश्वकर्मा ने मेरु पर्वत को जल में रखवा कर सृष्टि को स्थिर करवा दिया.

वर्षों बाद आज बन रहा शुभ संयोग
विश्वकर्मा पूजा के दिन इस बार कई शुभ योग बन रहे हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करीब 50 साल बाद विश्वकर्मा पूजा के दिन कई दुर्लभ योग बन रहे हैं, जिसमें अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, ब्रह्म योग और द्विपुष्कर योग शामिल है. 17 सितंबर रविवार को इस बार विश्वकर्मा पूजा मनाया जा रहा है, जिस समय सूर्य देव कन्या राशि में गोचर करेंगे. इस दिन ब्रह्म योग प्रात काल से लेकर अगले दिन 4:28 सुबह तक रहेगा और उसके बाद इंद्रयोग शुरू होगा. विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10:15 से दोपहर 12:26 तक का है.

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