आज के समय में लोग सत्ता के मोह में इस तरह दीवाने हुए हैं कि इसके लिए कुछ भी दांव पर लगाने को तैयार रहते हैं. साक्षात उदाहरण इसका कई नेताओं ने पेश किया है, जो अपनी कुर्सी को पाने के लिए कोई भी दांव खेल जाते हैं. पर आज हम आपको एक ऐसे नेता के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होनें किसी और नहीं बल्कि प्रभु राम के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी न्योछावर कर दी थी और आज कई दशक बाद उनका सपना पूरा होने जा रहा है. कल्याण सिंह भले ही आज दुनिया में नहीं है, पर उनकी कही हुई बातें आज भी लोगों को याद है. आज हम आपको बताएंगे किस तरह उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी और आज यह बात सुर्खियों में क्यों बनी रहती है. इसके पीछे की कहानी क्या है.
कल्याण सिंह जी का परिचय 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में कल्याण सिंह का जन्म हुआ था. उन्होंने स्नातक तथा साहित्य रत्न की शिक्षा प्राप्त की और शुरुआती दौर में अपने गृह क्षेत्र में अध्यापक बने. राजनीति में आने से पहले वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए पूर्णकालिक स्वयंसेवक थे. इसके बाद जन संघ की राजनीति में सक्रिय हो गए. भाजपा से अपनी राजनीति शुरू करने वाले कल्याण सिंह कई बार अतरौली विधानसभा से निर्वाचित हुए. वह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उनका राजनीतिक सफर यहीं तक नहीं रुका. उन्होंने लोकसभा सांसद बनने के साथ-साथ राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी अपनी सेवाएं दी. 1962 में अतरौली विधानसभा सीट से कल्याण बाबू को टिकट मिला लेकिन वह विधानसभा चुनाव हार गए. उसके बाद 5 साल तक जनता के बीच रहकर काम किया और उसका असर यह हुआ कि 1967 में उन्होंने ऐतिहासिक जीत हासिल की. इसके बाद वह कभी नहीं हारे और 1980 तक लगातार विधायक रहे जिस तरह भाजपा को देश में प्रतिनिधित्व दिलाने में अटल बिहारी वाजपेई ने जो भूमिका निभाई थी, उत्तर प्रदेश में भाजपा के ऐसे ही चेहरे कल्याण सिंह थे.
1992 में उन्हें क्यों छोड़ देनी पड़ी मुख्यमंत्री की कुर्सी : कल्याण सिंह जब यूपी के मुख्यमंत्री थे तब उन्हीं के कार्यकाल में 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की घटना हुई थी. इस दौरान उन पर मौन सहमति का आरोप लगा था जिसके बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए कहा था कि राम मंदिर के लिए वह ऐसी 100 कुर्सियां भी कुर्बान कर सकते हैं. उस समय कल्याण सिंह ने कहा था यह सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ है. ऐसे में हमारी सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान है. कल्याण सिंह ने भले ही कुर्सी छोड़ दी लेकिन उस दिन से वह हिंदुत्व का एक अमर चेहरा बन गए.हर साल 20 अगस्त को कल्याण सिंह की पुण्यतिथि पर हिंदू कौरव दिवस मनाया जाता है. दरअसल उनका जीवन हिंदू समुदाय के उत्थान और इसकी समृद्ध परंपराओं के संरक्षण के प्रति उनके समर्पण से चिन्हित था. जबकि उनके निधन से एक युग का अंत हो गया. इस दिवस के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनके आदर्शों और योगदानों को याद किया जाए और मनाया जाए.