फोकट का ज्ञान
अब बड़े कर्जदारों को पकड़ने की तैयारी,भारत में बैंक का लोन नहीं चुकाना आपको पड़ेगा ज्यादा महंगा
आज हर कोई बेहतर जीवन जीने के लिए हर सुविधाओं को इकट्ठा करना चाहता है, जिसके लिए हमें कई बार बहुत से पैसों की जरूरत पड़ती है. किसी को घर चाहिए होता है तो किसी को अपनी गाड़ी. ऐसे में अक्सर बैंक से लोन लेकर अपनी इन जरूरतों को पूरा किया जाता है और बैंक को ईएमआई जमा कराई जाती है, लेकिन कई बार हालात इस कदर बिगड़ जाते हैं कि लोन चुकाने के पैसे भी नहीं बचते. ऐसे मे आज हम आपको बताएंगे कि बैंक का लोन नहीं चुकाने की स्थिति में क्या होता है और इसके लिए क्या नियम है.
पहले आप यह जान लें कि बैंक से लिए जाने वाले लोन दो तरह के होते हैं. सिक्योर्ड लोन और अनसिक्योर्ड लोन.
सिक्योर्ड लोन के तहत होम लोन, गोल्ड लोन, म्यूच्यूअल फंड लोन, ऑटो लोन आते हैं, जबकि अनसिक्योर्ड लोन में पर्सनल लोन और एजुकेशन लोन आते हैं. अगर आप सही समय पर लगातार 90 दिन दिनों तक इएमआई की राशि जमा नहीं कराई जाए तो ऐसा होने पर बैंक द्वारा अकाउंट होल्डर को एक नोटिस भेजा जाता है, जिसमें कुल लोन की राशि का भुगतान एक बार में करने के लिए कहा जाता है. अकाउंट होल्डर द्वारा ऐसा नहीं करने पर बैंक द्वारा कानूनी कार्रवाई करने की धमकी भी दी जाती है.
लोन न चुकाने की स्थिति में पहले लीगल नोटिस भेजा जाता है. उसके दो महीने बाद बैंक दूसरा नोटिस भेजता है.इस नोटिस के जरिए बैंक यह बताता है कि अकाउंट होल्डर के खुद की घर की कीमत कितनी है और इसे नीलामी के लिए रखा गया है. घर की नीलामी की तारीख भी निश्चित होती है, जो आमतौर पर दूसरा नोटिस भेजने के 1 महीने बाद की होती है. इसमें ज्यादातर कार्रवाई करने की बजाय बैंक अकाउंट होल्डर पर दबाव बनाता है. अगर इसके बाद अकाउंट होल्डर के तरफ से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती है तब जाकर बैंक कानूनी कार्रवाई की ओर बढ़ते हैं.
अगर बैंक का लोन नहीं चुकाया तो आपकी संपत्ति को बैंक द्वारा जप्त किया जा सकता है और उसकी नीलामी कराई जा सकती है. इस विकल्प को आजमाने से पहले बैंक द्वारा अन्य विकल्पों पर पहले जोड़ दिया जाता है. अकाउंट होल्डर द्वारा लोन न चुकाने की स्थिति में बैंक को उसकी प्रॉपर्टी को देखना पड़ता है. अगर नीलामी में मिली राशि लोन की राशि से ज्यादा होती है तो उसे अकाउंट होल्डर के अकाउंट में डालना होता है,लेकिन नीलामी में मिली राशि लोन की राशि से कम होती है तो नीलामी के बाद भी बाकी की रकम अकाउंट होल्डर को बैंक को चुकानी होगी. यानी कि समय पूरा होने पर लोन का पैसा पूरा लेना बैंक की कार्यप्रणाली है.