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एक ऐसा शनि मंदिर जहां महादेव के रूप में दर्शन देते हैं शनि देव, 2000 वर्ष पुराना है इतिहास

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एक ऐसा शनि मंदिर जहां महादेव के रूप में दर्शन देते हैं शनि देव, 2000 वर्ष पुराना है इतिहास

भारत में शनि देव के कई ऐसे मंदिर हैं जहां पर पूजा पाठ करने की अलग-अलग मान्यताएं हैं. इन मंदिरों में पूजा करने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं, पर क्या आप एक ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं जहां पर शनि भगवान महादेव के रूप में दर्शन देते हैं. यह मंदिर महादेव की नगरी उज्जैन में स्थापित है जिसका इतिहास 2000 वर्ष से भी पुराना है. इस मंदिर की स्थापना को लेकर पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि किस तरह मंदिर में शनि देव के साथ-साथ महादेव को भी स्थापित किया गया जहां भक्त दोनों देवताओं की पूजा करते हैं और एक साथ लोगों को दोनों देवताओं का आशीर्वाद मिलता है.

उज्जैन स्थित नवग्रह शनी मंदिर का परिचय
मध्य प्रदेश के उज्जैन में यह शनि मंदिर स्थित है. मात्र इस मंदिर के दर्शन से ही शनि की कुदृष्टि और ग्रहों के प्रकोप शांत हो जाते हैं. यह देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां शिव के रूप में शनि विराजित है. लगभग 2000 साल पहले इस मंदिर की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने की थी. विक्रमादित्य ने इस मंदिर की स्थापना के बाद ही विक्रम संवत की शुरुआत की थी. यहां पर शनि देव की मूर्ति के साथ-साथ एक शिवलिंग भी है. मंदिर के मुख्य भाग में शनि की दो दशा साढे़साती और ढैय्या सहित गणेश और हनुमान जी भी स्थापित है. परिक्रमा मार्ग में नौ ग्रहों की भी पूजा की जाती है. सभी नकारात्मक प्रभाव दूर करने और सुख शांति के लिए नवग्रह की पूजा होती है, जिसमें सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु शामिल है. महाकाल मंदिर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर नवग्रह शनी मंदिर स्थापित है. यहां पर तीन नदियों का संगम है जिसमें है शिप्रा, सरस्वती और गंडकी शामिल है. संगम पर ही नवग्रह शानी मंदिर की स्थापना है. इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक पौराणिक कथा है. एक बार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य पर शनि की साढे़साती का प्रकोप हुआ जिसकी वजह से उनका पूरा राज पाट चला गया. उन्हें एक तेली के घर काम करके अनेक कष्ट भोगने पड़े. इस दौरान उनके ऊपर चोरी के आरोप भी लगे और हाथ पैर कटवा दिए गए. तब उन्हे साढे़साती के बारे में कोई ज्ञान नहीं था पर जब धीरे-धीरे साढे़साती का समय समाप्त होने लगा और उनकी दशा सुधरने लगी तब राजा विक्रमादित्य को इसके बारे में ज्ञान हुआ फिर उन्होंने उज्जैन के इस जगह पर आकर पूजन कर सभी नवग्रह का हवन किया. तब सभी ग्रहों ने आकर विक्रमादित्य को दर्शन दिए और यही स्वयंभू रूप में विराजमान हो गए.
राजा विक्रम आदित्य के आदर्श देव महाकाल थे. यही वजह है कि उनके शिवलिंग स्वरूप की हर जगह पर स्थापना की गई है. उज्जैन के इस मंदिर में शिवलिंग स्वरूप के रूप में शनि देव महाराज की स्थापना है.

इस मंदिर से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें
1. 3:30 पीठ में से यह पूर्ण एक पीठ है. ढाई फीट महाराष्ट्र में है.

2. इस मंदिर में पहुंचकर नवग्रह की आराधना करने से कुंडली दोष, शनि दोष, राहु की दशा साढे़साती, ढैय्या और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है.

3. यह विश्व का सबसे बड़ा नवग्रह मंदिर है जो व्यक्ति के जीवन की दशा और दिशा तय करते हैं.

4. यहां शनिचरी अमावस्या पर मेला लगता है और श्रद्धालु इस संगम में स्नान करते हैं.

5. श्रद्धालु यहां पनौती के तौर पर अपने जूते और पुराने परिधान त्यागते हैं और नए परिधान धारण करते हैं.

उज्जैन के नवग्रह शनी मंदिर में विराजमान मूर्ति के दिव्य दर्शन.

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